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जीवन एक कल्पवृक्ष की कीर्ति को बढ़ाते हैं, अपनी कमाई-अपने आपकी कमाई पैदा करनेवाले पुत्र! दुनिया भी उन्हीं के गुण गाती है। ___ 'मैं खुद कमाई करूँगा... सिंहलद्विप जाऊँगा... पर...' उसके मन में सुरसुंदरी आ गयी, माता धनवती का प्यार साकार हो उठा। 'इन सबको छोड़कर मैं कैसे जा सकता हूँ : इनके बिना क्या मैं जी सकूँगा? मेरे बगैर माँ रह पायेगी? सुरसुंदरी? नहीं.., नहीं जाना विदेश । पिताजी भी इज़ाज़त नहीं देंगे किसी भी हालात में | माँ तो मेरे विदेशगमन की बात सुनकर ही बेहोश हो जाएगी। सुंदरी को कितना आघात लगेगा... नहीं, नहीं...।' ___ अमरकुमार का मन अस्वस्थ होने लगा। फिर भी वह अपनी बेचैनी को बाहर प्रकट नहीं होने दे रहा था। किसी को भी वह अपनी अस्वस्थता का संकेत भी नहीं पाने दिया। __ एक ओर खुद की कमाई करने की तमन्ना... विदेश देखने की प्रबल अभिलाषा... दूसरी ओर माँ की अटूट ममता... पत्नी का असीम प्यार... इस कशमकश ने उसके चित्त को चंचल बना डाला, उद्विग्न बना डाला।
चतुर सुरसुंदरी भाँप गयी अमरकुमार की इस उद्विग्नता को | उसे लगा... 'कुछ कारण है... अमरकुमार इन दिनों परेशान नज़र आ रहे हैं... उखड़ेउखड़े से लग रहे हैं।'
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