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कितनी खुशी, कितना हर्ष!
५७ यह तो राजपरिवार मिला था, समधी के रूप में! खुद के पास भी अपार संपत्ति थी! फिर वह कसर रखे भी क्यों!
भव्य और विशाल हवेली में अमरकुमार व सुरसुंदरी के लिए शानदार और कलात्मक कक्ष तैयार किये गये। श्रेष्ठ तरह की कलाकृतियों से उन कमरों को सजाया गया। राजकुमारी को राजमहल से भी ज्यादा प्रिय लगे वैसी साज-सज्जा की गयी।
धनावह श्रेष्ठी ने सुरसुंदरी के लिए, राज्य के जानेमाने सुवर्णकरों को हवेली में निमंत्रित करके आभूषण तैयार करवाये। हीरे-मोती व पन्नों के कीमती नग उन आभूषणों में जड़वाये । अमरकुमार के लिए भी उसके मनपसंद अलंकार बनाये गये।
राजमहल और हवेली में निमंत्रित मेहमान आने लगे। शादी का दिन निकट आ गया। शादी की सारी रीति-रस्मे पूरी होने लगी। ___ शुभ दिन एवं शुभ मुहूर्त में आनंदोत्सव के साथ अमरकुमार और सुरसुंदरी की शादी हो गयी।
सुरसुंदरी को आँसू बरसती आँखो से राजा-रानी ने बिदा किया। रानी रतिसुंदरी ने सिसकती आवाज़ में कहा : बेटी, पति की छाया बनकर रहना।' __सुरसुंदरी फफक-फफककर रो दी। अमरकुमार के साथ रथ में वह श्वसुरगृह को बिदा हुई। अमरकुमार ने वस्त्रांचल के छोर से सुरसुंदरी के
आँसू पोंछे । सुरसुंदरी ने अमरकुमार के सामने की ओर | अमर की आँखे भी गीली थी। सुरसुंदरी का दुःख उसके आँसू, मानो अमर का दुःख... अमर के आँसू बन गये थे।
रथ हवेली के द्वार पर आकर खड़ा रहा। दंपति रथ में से नीचे उतरे | सेठानी धनवती ने दोनों का यथाविधि हवेली में प्रवेश करवाया। दोनों ने धनवती के चरणों में प्रणाम किया। धनवती ने हृदय का प्यार बरसाया ।
अमर ने धनावह सेठ के चरणों मे प्रणाम किया। सुंदरी ने दूर से ही प्रणाम किया। सेठ ने दोनों को अंतःकरण के आशीर्वादों से नहला दिया।
अमरकुमार एवं सुरसुंदरी! बचपन के सहपाठी आज जीवनयात्रा के सहयात्री बन चुके थे। पति-पत्नी बन गये थे। सहजीवन जीनेवाले बन गये थे।
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