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कितनी खुशी, कितना हर्ष! संस्कारों से उजागर करनेवाली तू, पतिगृह को भी उज्ज्वल बनाएगी। तेरा सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन एवं सम्यक्-चारित्र, तेरी आत्मा का कल्याण करनेवाले होंगे। श्री नमस्कार महामंत्र तेरी रक्षा करेगा और तेरे शील के प्रभाव से देवलोक के देव भी तेरा सान्निध्य स्वीकार करेंगे।
साध्वी के हृदय में वात्सल्य और करूणा का झरना बह रहा था। उस झरने में सुरसुंदरी नहाने लगी... उसका दिल अपूर्व शीतलता महसूस करने लगा। __साध्वीजी को पुनः पुनः वंदना कर के वह उपाश्रय के बाहर आयी। रथ में बैठकर राजमहल पहुंची।
राजमहल में सैकड़ों लोगों की आवाजाही चालू हो चुकी थी। महामंत्री अलग-अलग आदमियों को तरह-तरह के कार्य सोपें जा रहे थे। इकलौती राजकुमारी की शादी थी। मात्र राजमहल ही नहीं, अपितु सारी चंपानगरी को सजाने-सँवानरे का आदेश दिया था, महाराजा रिपुमर्दन ने। कारागृह में से कैदी मुक्त कर दिये गये थे। दूर-दूर के राज्यों में से श्रेष्ठ कारीगरों एवं कलाकारों को बुलाये गये थे।
राजपुरोहित ने शादी का मुहूर्त एक महिने के बाद का दिया था। एक महिने में राजमहल का रूप-रंग बदल देना था। चंपानगरी के यौवन को सजाना था।
चंपानगरी की गली-गली और हर मुहल्ले में सुरसुंदरी की शादी की बातें होने लगी थी।
'महाराजा ने सुरसुंदरी के लिए वर तो श्रेष्ठ खोजा।' 'सुरसुंदरी के पुण्य भी तो ऐसे हैं! वरना, ऐसा दूल्हा मिलता कहाँ?'
'तो क्या अमरकुमार के पुण्य ऐसे नहीं? अरे, उसे भी तो रूप-गुण संपन्न पत्नी जो मिल रही है।'
'भाई, यह तो विधाता ने बराबर की जोड़ी रची है।' 'बिलकुल ठीक, अपने को तो जलन होती है।'
हजारों लोक तरह-तरह की बातें करने लगे, सभी के होठों पर दोनों की प्रशंसा के फूल खिले जा रहे हैं। चंपानगरी मानो हर्ष के सागर में डूब गयी जा!
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