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। ७. पहेलियाँ
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अंगदेश की राजधानी थी चंपानगरी। चंपानगरी सुंदर थी और समृद्ध भी।
राजा रिपुमर्दन ने चंपा को सजाया-सँवारा था। चंपा की प्रजा में शिक्षण एवं संस्कार सींचे थे। राजा स्वयं आईत्-धर्म का उपासक था। फिर भी अन्य धर्मों के प्रति वह सहिष्णु था। राजा में न्यायनिष्ठा थी, प्रजा भी राजा के प्रति राजा को वत्सलता थी तो प्रजा के प्रति वफादार थी। __ आज राजा रिपुमर्दन की राजसभा नागरिकों से खचाखच भरी हुई थी। चूँकि आज राजकुमारी सुरसुंदरी एवं श्रेष्ठीपुत्र अमरकुमार के बुद्धि-कौशल की परीक्षा होनेवाली थी।
राजसिंहासन पर महाराजा रिपुमर्दन विराजमान थे। उनके समीप के आसन पर श्रेष्ठीवर्य धनावह सुंदर एवं मूल्यवान अलंकार पहने हुए बैठे थे। महाराजा की दूसरी ओर पंडित श्री सुबुद्धि बिराजमान थे।
सुरसुंदरी ने श्रेष्ठ वस्त्रों को परिधान किया था। गले में कीमती रत्नों का हार, कानों मे कुंडल, दोनो हाथों मे मोती जड़े कंगन और पैरों मे नूपुर धारण किये हुए थी। आँखें में काजल था और होठ तांबूल की रक्तिमा से युक्त थे। हज़ारों की आँखें उसकी ओर बंधी हुई थी।
अमरकुमार ने भी अपने वैभव के अनुरूप वस्त्रालंकर धारण किये थे। उसका शरीर स्वस्थ-पुष्ट था। उसकी कांति देदीप्यमान थी। उसकी आँखों में चमक थी। उसके ललाट पर तेजस्विता झलक रही थी।
राजसभा का प्रारंभ माँ सरस्वती की मंगल प्रार्थना से हुआ। महाराजा रिपुमर्दन ने राजसभा को संबोधित करते हुए कहा : 'प्यारे सभासदों एवं नगरजनों! आज का यह अवसर अपने सब के लिए खुशी का प्रसंग है। आज कुमारी सुरसुंदरी के बुद्धि-कौशल्य की और श्रेष्ठी श्री धनावह पुत्र अमरकुमार के बुद्धि-वैभव की परीक्षा होगी। इन दोनों ने महापंडित श्री सुबुद्धि की पाठशाला में अध्ययन किया है। विविध कलाओं में दोनों पारंगत हुए हैं। अनेक विषयों का श्रेष्ठ अध्ययन इन्होंने किया है। आर्हत-धर्म के सिद्धांतों की भी उच्च शिक्षा प्राप्त की है।
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