________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शिवकुमार
२७
दो घुड़सवार वहाँ आ पहुँचे । हमें देखकर वे घोड़े से नीचे उतरे हमारे पास आकर सिर झुकाकर बोले : ।' आपको खोजते खोजते ही हम यहाँ आये हैं । आपने जब पिछले गाँव से विहार किया, तब हम भी उसी गाँव से निकले थे। जहाँ आपको जाना था, उसी सामनेवाले गाँव में हमको भी जाना था । हम वहाँ पहुँचे। शाम हो गयी... रात होने लगी... पर आप सब न आये तो हमें कुछ डर-सा लगा... हमें हुआ शायद आप रास्ता भूल गयीं होंगी... यह जंगल तो चोर - डाकुओं का इलाका है... इसलिए हम आपको खोजते खोजते यहाँ आ पहुँचे।'
'आप कौन हैं महानुभाव ? ' हमने पूछा ।
'आपके सेवक...!' यों कहकर वे दोनों घुड़सवार वहाँ से चले गये ।
'ओह! यह तो कितना गज़ब का अनुभव है । बस, अब आपको और ज्यादा कष्ट नहीं देना है आज ।'
सुरसुंदरी ने वंदना की और अपने महल की ओर लौटी। साध्वीजी वात्सल्य भरी निगाहों से भोली हिरनी-सी सुरसुंदरी को जाती हुई देखती रही ।
For Private And Personal Use Only