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शिवकुमार
'हाँ, क्यों नहीं?' 'मेरा एक काम यदि तू करेगा, तो तुझे ढेर सारा सोना मिलेगा।' 'जरूर... आप कहेंगे वैसा करूँगा..., कहिए क्या करना है मुझे?' शिवकुमार तो गिर गया अघोरी के चरणों में! __'तो चल, मेरे साथ!' अघोरी शिवकुमार को लेकर पहुँचा श्मशान में।
काली चौदस की डरावनी रात सिर पर थी। शिवकुमार वैसे तो काफी नीडर था पर श्मशान का वातावरण उसमें भय और शंका से कँपकँपी पैदा कर रहा था। अघोरी एक शव को उठा लाया।
'तू इस मुर्दे के पैरों के तलवे मसलते रहना| घबराना मत, मैं थोड़ी दूर बैठकर मंत्र का जाप करूँगा। तू यहाँ से खड़ा मत होना। यदि खड़ा हो जाएगा तो यह मुर्दा जिन्दा होकर तुझे मार डालेगा, और यदि बिना घबराए बैठा रहेगा, तो तुझे मैं मालामाल कर दूंगा।' ___ अघोरी ने शिवकुमार को सावधान करते हुए मुर्दे के हाथ में कटारी रखी और खुद थोडी दूरी पर बैठकर मंत्र जपने लगा।
शिवकुमार सोचने लगा, लगता है यह अघोरी मुझे मार डालने का पैंतरा सोच रहा है। मुझे शायद मारकर ही उसकी मंत्रसिद्धि होगी। मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। यह कोई मेरा रिश्तेदार थोड़े ही है जो मुझे यों मुफ्त में ही सोना दे देगा? मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिए, पर भागूं तो भी कैसे? यदि अघोरी मुझे भागता देख ले, तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा! हाय... मैं यहाँ कैसे फँस गया? अब क्या होगा? मेरे किये पाप आज मुझे मारकर ही रहेंगे... ओह! मेरे इस जन्म के पाप इसी जन्म में प्रगट हो गये।' उसे अपने पिता की याद आने लगी। इसी के साथ पिता की दी हुई अंतिम सलाह उसके दिमाग में कौंधी! 'बेटा, जब भी संकट में फँस जाए तब नमस्कार मंत्र का स्मरण करना...'
शिवकुमार ने मृतदेह को दूर रखा और खुद पद्मासन लगाकर एकाग्र मन से श्री नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा।
इधर, अघोरी की मंत्रसाधना के कारण मृतदेह में वैताल का प्रवेश होता है और मुर्दा हिलने-डुलने लगता है। खड़ा होने जाता है और गिर जाता है... तीन-तीन बार मुर्दे ने खड़े होने का प्रयत्न किया, पर वह तीनों बार गिर पड़ा।
वैताल मुर्दे के शरीर में प्रविष्ट था। उसने शिवकुमार का घात करने का
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