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| ४. शिवकुमार as
साध्वीजी के अमृत वचन सुरसुंदरी के दिल में गूंजते रहें। श्री नमस्कार महामंत्र के प्रति श्रद्धा और ज्यादा मजबूत हुई। निस्वार्थ और निरीह साध्वीजी की बातें उसे पूर्ण रूप से विश्वसनीय लगीं। रात्रि के समय महामंत्र का स्मरण करते-करते ही वह निद्राधीन हुई। ___ सुबह जब वह जगी तब एकदम प्रफुल्लित थी। उसका हृदय अव्यक्त आनंद की संवेदना से व्याप्त था। उसे अमरकुमार की स्मृति हो आयी... यदि वह मिले, तो उससे मैं श्री नमस्कार महामंत्र के प्रभाव की बात करूँ... वह भी रोज़ाना इस महामंत्र का स्मरण करे | पर आज नहीं, आज तो मैं साध्वीजी से महामंत्र के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करूँगी। फिर अमर से मिलूँगी और उससे बातें करूँगी।'
भोजन वगैरह से निवृत्त होकर, मध्याह्न के समय सुरसुंदरी उपाश्रय में साध्वीजी के पास पहुँची वंदना करके विनम्रतापूर्वक बैठ गई। साध्वीजी से कुशलपृच्छा की और कहा : 'गुरूमाता, कल आपने जो बातें बतायी थी... मेरे मन में उन्हीं का चिंतन चलता रहा। रात को एकाग्र मन से महामंत्र का स्मरण करते-करते मैं कब सो गयी... पता ही नहीं चला। क्या आज भी उसी विषय में मुझे और कुछ बताने की कृपा करेंगी?'
'भाग्यशीले, ज़रूर! आज मैं तुझे एक प्राचीन कहानी सुनाउँगी। यह कहानी, श्री नमस्कार महामंत्र के दिव्य प्रभाव से गूंथी हुई है। सुनकर तेरा मन जरूर आह्लादित होगा।' 'अच्छा ... तब तो जरूर सुनाइए...!' साध्वीजी ने कहानी कहना शुरू किया। रत्नपुरी नाम का एक नगर था। उसका राजा था दमितारि | उसी नगर में यशोभद्र नाम के एक परमात्मभक्त श्रेष्ठी रहते थे। हमेशा वे एकाग्र मन से श्री पंचपरमेष्ठी नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया करते थे।
यशोभद्र श्रेष्ठी का राजा के साथ अच्छे संबंध थे। सेठ का इकलौता लड़का था शिवकुमार | तरूणावस्था से ही वह बुरे दोस्तों की सोहबत में फँस गया था। आवारा लड़कों के साथ घूमना-फिरना उसका रोजाना क्रम बन गया
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