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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ आंसुओं में डूबा हुआ परिवार ARENERAIKALRALLELEtaStatestra STRATv ४६. आँसुओं में डूबा हुआ परिवार CHAYRAYANELEYEARNAMASHANALAYEErrior fici "... मृत्युंजय गुणमंजरी को लेकर आ गया था। धनावह की हवेली में आनंद छा गया था। गुणमंजरी देवकुमार जैसे पुत्र को लेकर आई थी। धनवती ने गुणमंजरी के आगमन के साथ ही पौत्र को अपने पास ले लिया था। अमरकुमार और सुरसुंदरी रथ में से उतरकर हवेली में प्रविष्ट हुए, इतने में वहाँ पर खड़ी गुणमंजरी ने सस्मित स्वागत किया...। सुरसुंदरी गुणमंजरी से लिपट गयी। इतने में धनवती पौत्र को लेकर आ पहुँची। सुरसुंदरी ने उसे अपनी गोद में ले लिया। प्यार के नीर से नहला दिया उस को। दोनों पत्नियों के साथ अमरकुमार अपने कक्ष में आया। अमरकुमार ने गुणमंजरी की कुशल-पृच्छा की। बेनातट के समाचार पूछे। पुत्र को अपने उत्संग में लिया। टकटकी लगाए उसे देखा! सुरसुंदरी बोल उठी : नाथ, बच्चे में बिलकुल आप की ही आकृति संक्रमित हुई है! उसके चेहरे पर पुण्य का तेज चमक रहा है! __ 'कोई जीवात्मा अनंत पुण्य लेकर यहाँ जन्मा है। वैसे भी मनुष्य-जीवन अनंत पुण्योदय के बिना मिलता ही नहीं है न? आर्यदेश... उत्तमकुल सब पुण्य के उदय से ही मिलता है!' __ 'अरे, इस पुत्र को तो संस्कार भी उत्तम ही मिलेंगे! देखना... गुणमंजरी संस्कार देने में जरा भी कमी नहीं रखेगी।' 'नहीं रे... मैं तो उसे केवल दूध पिलाऊँगी, बाकी वह रहेगा तुम्हारे ही पास! उसे संस्कार करने का कार्य तुम्हारे ही जिम्मे रहेगा...। उसका लालनपालन भी तुम्हें ही करना होगा।' गुणमंजरी ने कहा। सुरसुंदरी ने अमरकुमार की ओर देखा। दोनों के चेहरे पर स्मित उभर आया। सुरसुंदरी मौन रही... उसने आँखें बंद कर ली | गुणमंजरी सोच में डूब गयी... वह बोल उठी : For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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