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किये करम ना छूटे
३१५ साथ थोड़े ही दिनों में संयमधर्म अंगीकार करनेवाली है। वह तुम्हें और चारों भाभियों को अत्यंत याद कर रही है...। तुम्हारे उपकारों को, तुम्हारे गुणों को रोज़ाना याद करती है...| तुम चारों भाभियों को लेकर दीक्षा-प्रसंग पर चंपानगरी में ज़रूर पधारना। उनसे कहना कि तुम्हारी भगिनी पलकपाँवड़े बिछाये तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।' सुरसुंदरी की आँखें बरस पड़े... उसका स्वर रूंध सा गया। ___ 'आपका संदेश हम आज ही महाराजा रत्नजटी से कह देंगे महासती! और हम भी उन्हें आग्रह करके कहेंगे कि वे ज़रूर-ज़रूर चंपानगरी में तुमसे
मिलें।
'तो मुझ पर तुम्हारा महान् उपकार होगा।' विद्याधर युगल आकाशमार्ग से चले गये।
अमरकुमार-सुरसुंदरी ने गुरूदेव को वंदना की, कुशलता पूछी और विनयपूर्वक गुरूदेव के सामने बैठे। सुरसुंदरी ने कहा :
'गुरूदेव, हमारे पूज्य माता-पिता आपको वंदन करने के लिए रोज़ाना आएँगे। आप उन्हें प्रेरणा देने की कृपा करना कि वे हमें शीघ्र अनुमति दें...!'
'भद्रे, तुम निश्चित रहना। तुम्हें अनुमति मिल जाएगी... और घर पर पहुँचोगे तब वहाँ पर गुणमंजरी भी अपने पुत्र के साथ तुम्हें मिल जाएगी!'
'क्या...?' दोनों आनंदविभोर हो उठे!
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