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किये करम ना छूटे
३१२ ___ श्री नवकार मंत्र और से शीलव्रत के प्रभाव से दुनिया में उसका यश फैला और दिव्य सुख उसे प्राप्त हुआ।' महामुनि ने पूर्वजन्म की कहानी पूरी की।
अमरकुमार और सुरसुंदरी उस कथा के दृश्यों को अपने मानसपटल पर चित्रांकन की भाँति उभरते देखने लगे। दोनों को जाति-स्मरण ज्ञान प्रगट हो गया था। पूर्वजन्म की जो-जो बातें बतायी थी वे सारी बातें स्मृति पथ में उभर आयीं।
दोनों की आँखें खुशी के आँसुओं से भर आयीं। सुरसुंदरी ने गुरूदेव को वंदना करके कहा :
'गुरूदेव, आपने हमारे पूर्वजन्म की जो बातें कही... वह बिलकुल यथार्थ है...। मैंने खुद जातिस्मरण के ज्ञान से उन बातों को जाना है!' ___ अमरकुमार ने कहा : 'गुरूदेव, मुझे भी जाति-स्मरण ज्ञान प्रगट हुआ है। आपकी कही हुई बातें सच्ची हैं... यथार्थ हैं!'
सुरसुंदरी ने गद्गद् स्वर से कहा : 'कृपानिधान, इस भीषण भवसागर में मोहवश... अज्ञानवश... अनेक पापाचरण करनेवाले हम दोनों का उद्धार करें | अब नहीं रहना है संसार में नहीं चाहिए संसार के सुखभोग! नहीं चाहिए वैभव-संपत्ति...| बस गुरूदेव, अब तो आपके चरणों में हमें शरण दे दिजिए। आप जैसे परमज्ञानी गुरूदेव के मिलने के पश्चात् भी क्या... हम संसारसागर में डूब जाएँ?
अमरकुमार भाव-विभोर बनता हुआ बोल उठा : 'गुरुदेव, आप अकारण, स्वभाव से वत्सल हैं... भवसागर से तैरकर उस पार जाने के लिए नौका-रूप हैं... हमें तार लीजिए!'
ज्ञानधर महामुनि ने कहा : 'हे पुण्यशाली दंपति, भवसागर से तैरने का एक ही उपाय है और वह है चारित्रधर्म! सर्व-विरतिमय संयमधर्म! उस धर्म को स्वीकार करके भवसागर को तैर जाओ!
'गुरूदेव, हम पर कृपा करके हमें वह चारित्रधर्म प्रदान करें...। हमें अब आपकी ही शरण है!' अमरकुमार ने महामुनि के चरणों में अपना मस्तक रख दिया।
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