________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सहचिंतन की ऊर्जा
३०७
ज्यों-ज्यों नगर में ढिंढोरा पीटता गया त्यों-त्यों हज़ारों स्त्री-पुरूष ज्ञानधर महामुनि के दर्शन-वंदन करने के लिए नगर के बाहर जाने लगे। नगर में आनंद और उल्लास का वातावरण फैल गया।
बाहरी उद्यान-उपवन हज़ारों स्त्री-पुरूषों से भरा जा रहा था। महाराजा रिपुमर्दन राजपरिवार के साथ आ पहुँचे । मुनिराज के दर्शन कर के सभी के मनमयुर नाच उठे। सभी ने मुनिराज की तीन परिक्रमाएँ की । विधिपूर्वक वंदना की। क्षेम-कुशल पूछी। महाराजा ने मुनिराज से प्रार्थना की :
'गुरूदेव... आपने हमारे नगर को पावन किया है... अब हमें धर्मदेशना देकर हमारे त्रिविध ताप - संताप को शांत करने की महती कृपा करें ।'
मुनिराज श्री ज्ञानधर अवधिज्ञानी महामुनि थे। त्रिकालज्ञानी थे। उच्चकोटी के चारित्रधर्म का पालन करते थे। मगधदेश में उनकी ख्याति थी । महामुनि ने धर्मदेशना प्रारंभ की :
'महानुभावों,
चार गतिमय इस संसार में मनुष्यजीवन मिलना काफी दुर्लभ है। कर्मों के विवश बनी हुई... अनंत अनंत आत्माएँ इस संसार में परिभ्रमण कर रही हैं। अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक दुःखों से पीड़ित बनती है। जब वैसे विशिष्ट कोटि के पुण्यकर्म का उदय होता है तब जीव को मनुष्य-भव मिलता है। आर्यदेश में जन्म मिलता है। सुसंस्कारशील माता-पिता मिलते हैं।
मनुष्यजीवन में सद्धर्म का श्रवण तो उससे भी कई गुना ज्यादा पुण्योदय से प्राप्त होता है। सद्गुरू का योग प्राप्त होना बड़ा मुश्किल है। उनके मुँह से मोक्षमार्ग का बोध प्राप्त होने के पश्चात् उस बोध पर विश्वास... दृढ़ श्रद्धा होना जरूरी हैं। आत्मा की मुक्ति प्राप्त करने का यही सच्चा रास्ता है ।
उस श्रद्धा में से वैसा वीर्योल्लास प्रगट होता है कि मनुष्य चारित्र धर्म का पालन करने के लिए तत्पर बन सकता है। यह मनुष्यजीवन चारित्रधर्म का पालन करने के लिए ही मिला हुआ उत्तम जीवन है।
पुण्यशाली, आत्मा पर लगे हुए अनंत अनंत कर्मों को तोड़ने का महान पुरूषार्थ चारित्रमय, संयममय जीवन में ही हो सकता है।
संसार के वैषयिक सुख तो हलाहल, कालकूट ज़हर से भी ज्यादा खतरनाक हैं। उन सुखों में लीन नहीं होना चाहिए । सुखों का राग और दुःखों का द्वेष जीव को मोहांध बना देता है । मोहांध बना हुआ जीव अनेक कुकर्म
For Private And Personal Use Only