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सहचिंतन की ऊर्जा
३०६ __ धनावह श्रेष्ठी ने राजदूत को क़ीमती रत्नों का हार भेंट किया। मंदिरों में उत्सव आयोजित किये गये । भव्य भोजन-समारंभो का आयोजन हुआ। गरीबों को खुले हाथ दान दिये गये।
राजा रिपुमर्दन ने कैदियों को मुक्त कर दिया। समग्र राज्य में महोत्सवों का आयोजन किया गया। प्रजा आनंदित हो गयी। ____ अमरकुमार ने मृत्युंजय को बेनातट नगर जाने के लिए रवाना किया, गुणमंजरी को पुत्र के साथ चंपानगरी लिवा लाने के लिए। ___ महाराजा रिपुमर्दन की राजसभा भरी हुई थी। अमरकुमार महाराजा के पास ही सिंहासन पर बैठा हुआ था। राज्यसभा का कार्य शुरू हो गया था। इतने में उद्यान के रक्षक माली ने राजसभा में प्रवेश किया। महाराजा को प्रणाम करके उसने निवेदन किया :
'महाराजा, ज्ञानधर नाम के महामुनि ने अनेक मुनिवरों के साथ चंपानगरी को पावन किया है। हे कृपावंत, वे महामुनि सूरज से तेजस्वी हैं, चंद्र जैसे शीतल हैं, भारंड पक्षी से अप्रमत्त हैं... उनकी आँखों से कृपा बरस रही है - उनकी वाणी में से ज्ञान के फूल झरते हैं!
राजेश्वर! ऐसे महामुनि चंपा के बाहरी उपवन में पधारे हुए हैं!'
महाराजा रिपुमर्दन हर्ष से गद्गद् हो उठे! सिंहासन पर से खड़े हुए। बाहरी उपवन की दिशा में सात कदम चलकर उन्होंने महामुनि की भाववंदना की और इसके बाद उद्यानरक्षक को सुवर्ण की जिह्वा भेंट की। अनेक आभूषणों से उसको सजा दिया।
महामंत्री को आज्ञा देते हुए कहा : 'नगर में ढिंढोरा पिटवा दो कि नगर के बाहरी उपवन में ज्ञानधर महामुनि पधारे हैं। सभी नगरजन उन महामुनि के दर्शन करके पावन हो जाएँ । उनका उपदेश सुनकर धन्य बनें।
हस्तिदल, अश्वदल, रथदल और पदातिसेना को तैयार कराओ... अच्छी तरह सजाओ... राजपरिवार के साथ मैं भी उन पूज्य मुनिभगवंत के दर्शनवंदन करने के लिए जाऊँगा। राजसभा का कार्य स्थगित कर दो!'
राजसभा का कार्य पुरा हुआ । अमरकुमार और सुरसुंदरी भी महाराजा के साथ जाने के लिए तैयार हुए। श्रेष्ठी धनावह और सेठानी धनवती भी सुंदर वस्त्राभूषणों से सजकर गुरूवंदन के लिए जाने को तैयार हुए।
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