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बिदाई की घड़ी आई
'नहीं... उसे अब खबर दूंगा।' 'ठीक है... तब तो... मैं उसी के पास जा रही हूँ। मुहूर्त की सूचना भी दे दूं। मिल भी आऊँ । आप यहीं पर बातें कीजिए। मैं अभी आयी।' सुरसुंदरी वहाँ से चलकर गुणमंजरी के कमरे में पहुँच गयी। गुणमंजरी ने प्यार से स्वागत किया। दोनों पलंग पर बैठीं।
'शादी का मुहूर्त तय हो गया है मंजरी! वसंतपंचमी का!'
'मेरी तो शादी हो ही गयी है! अब तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है यहाँ!' 'अरे पगली... अब तो केवल पाँच दिन का सवाल है।' 'मेरे लिए तो पाँच दिन भी पाँच साल जितने हैं, इसका क्या!' 'तो फिर कल से मैं यहाँ आ जाऊँ?'
'अरे, वाह! तब तक तुम मेरे सिर आँखों पर... लेकिन बाद में उनका क्या? उन्हें तो तुम्हारे बगैर...!!!' ___ 'ओप्फोह... बारह बरस गुजार दिये मेरे बगैर, तो फिर पाँच दिन ज्यादा! क्या फर्क पड़ेगा?'
'अरे... बारह बरस बिता दिये वह बात छोड़ो... अब तो एक दिन क्या, बारह घंटे भी बिताना मुमकिन नहीं है।'
मंजरी, तूने उनको देखा है सही?' 'बिलकुल, चोर के रुप में जब पकड़वाकर मंगवाये गए थे तब दिखे थे न?' दोनों खिलखिलाकर हंस दीं। मुँह में आँचल दबाये दोनों देर तक हँसती रही। __महारानी ने कमरे में प्रवेश किया। कमरे का दृश्य देखकर उनका दिल खुशी के मारे भर आया। उनकी आँखें छलक आयीं। उन्हें लगा कि मेरी बेटी सुरक्षित हाथों में है।
वसंतपंचमी के शुभ दिन गुणमंजरी की शादी अमरकुमार के साथ धूमधड़ाके से हो गयी। महाराजा ने गुणमंजरी को ढेर सारी संपत्ति दी। आखिर इकलौती बेटी थी... लाड़ली थी... जान से भी ज्यादा प्यारी थी! ___ अमरकुमार गुणमंजरी और सुरसुंदरी के साथ अपने महल में आया । महल में भी सभी से मिलकर आनंद का उत्सव मनाया।
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