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सुर और स्वर का सुभग मिलन
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मालती ने विमलयश के शयनकक्ष को नया निखरा हुआ रूप दिया था। नये सिंगार से खंड की सजावट की थी। विमलयश के पलंग के सामने ही एक सुंदर स्वर्णदीप जलाया था। कमल के खिल हुए पुष्प पर एक सुंदर सलोनी आकृतिवाली नारीमूर्ति के हाथ में अर्धचंद्राकार पाँच प्रदीप रचे हुए थे। पाँचो प्रदीपों के सौम्य प्रकाश से पूराशयनकक्ष झिलमिल-झिलमिल हो रहा था।
विमलयश शयनकक्ष में बैठा हुआ था। नीरवता का वातावरण था। उसकी नज़रे स्वर्णदीप की ज्योति पर पड़ी... प्रदीपों की ज्योति में उसे पंचपरमेष्ठी भगवंतों की आकृति उभरती दिखायी दी... उसने 'नमः पंचपरमेष्ठिभ्यः' बोलकर भाववंदना की।
नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव मैंने अपने जीवन में अनुभव किये हैं। उस महामंत्र के प्रभाव से ही मुझे आज राज्य भी मिल गया है। अचानक कैसी परिस्थितियाँ पैदा हो गयी? यदि चोर का उपद्रव न हुआ होता तो? राजकुमारी को चोर उठाकर नहीं ले गया होता... तो? महाराजा आधा राज्य देने की और राजकुमारी की शादी की घोषणा नहीं करते? तो मुझे राज्य मिलता भी कैसे?
और यह गुणमंजरी!! मुझे उसके साथ शादी रचानी ही होगी! यह भी कर्मों का अजीब खेल है न? औरत-औरत से शादी करेगी! परंतु उस बेचारी को मालूम ही कहाँ है कुछ? वह तो मुझे राजकुमार ही मान रही है! अरे, इस नगर में सभी तो मुझे राजकुमार समझ रहे हैं!
गुणमंजरी के साथ शादी करनी पड़ेगी। जब तक अमरकुमार का मिलन नहीं हो तब तक अपना भेद मैं खोल नहीं सकती! हाँ, मुझे गुणमंजरी से अलग रहना होगा। उस भोलीभाली राजकुमारी को मैं वैषयिक सुख नहीं दे पाऊँगी। स्पर्शसुख की उसकी कल्पानाएँ साकार नहीं हो पाएगी। उसे कितना धक्का पहुँचेगा?
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