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राज्य भी मिला, राजकुमारी भी!
२५५ मृत्युंजय हर्षविभोर हो उठा। उसने महाराजा के चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम किया। विमलयश ने घोषणा की : ___'कल राजसभा में, मृत्युंजय सारा का सारा चोरी का माल लाकर हाज़िर करेगा। जिनका-जिनका माल हो वे आकर ले जाएँ।'
महाराजा ने राजसभा को संबोधित करते हुए कहा : __'विमलयश यदि तस्कर की इस तरह कद्र कर सकता है तब तो मुझे भी विमलयश की कद्र करनी चाहिए... प्रिय प्रजाजनों, अपनी घोषणा के मुताबिक मैं अपना आधा राज्य विमलयश को अर्पण करता हूँ!'
राजसभा में 'महाराजा विमलयश की जय हो' के नारे बुलंद हो उठे। 'बड़ा योग्य सन्मान किया आपने महाराजा!' कहते हुए महामंत्री ने खड़े होकर विमलयश का अभिवादन किया।
'दूसरी महत्त्व की बात सुन लो...!' महाराजा का स्वर गूंजा। पूरी सभा खामोश हो गयी।
'मैं राजकुमारी गुणमंजरी की शादी कुमार विमलयश के साथ करने की घोषणा करता हूँ!'
प्रजाजन नाच उठे! गुणमंजरी शर्म से छुईमुई-सी हो उठी। दौड़कर जवनिका में चली गई। अपनी माँ के उत्संग में चेहरा छिपाकर अपने भीतर उफनते-उछलते खुशी के दरिये को रोकने लगी। ___ 'महाराजा, सचमुच राजकुमारी के लिए आपने काफी सुयोग्य वर का चयन किया है... राजकुमारी का महान पुण्योदय है... जिस कन्या का उत्कृष्ट पुण्य हो... उसे ही विमलयश सा पति मिले!' महामंत्री ने खड़े होकर महाराजा की घोषणा का अनुमोदन किया। महाराजा ने राजपुरोहित को संबोधित करते हुए कहा : 'पुरोहितजी, राजकुमारी की शादी के लिए शुभ मुहूर्त खोजकर कल मुझे इत्तला करना।' 'जैसी महाराजा की आज्ञा...' राजपुरोहित ने खड़े होकर महाराजा की आज्ञा को शिरोधार्य माना। राजसभा का विसर्जन हुआ।
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