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राज्य भी मिला, राजकुमारी भी !
२४८
तस्कर ने विमलयश के महल में से लाये हुए गहनों के ढ़ेर राजकुमारी के आगे रख दिया। आभूषणों पर विमलयश का नाम अंकित था।
'ये आभूषण तो मेरे उस परदेशी राजकुमार के हैं।' 'थे... अब नहीं हैं.... पगली... वह खुद ही अब तो जिंदा नहीं रहा । '
'क्या ?' राजकुमारी चीख उठी ।
‘उसे यमलोक में पहुँचाकर उसका सारा धन मैं साथ लाया हूँ, बोल, अब तो मेरी रानी होना कबुल है न?' जिस पर तू मर रही थी, वह तो कायर निकला... अरे... मर ही गया समझ ले ... !'
'नालायक... दुष्ट... तेरे जैसे नीच खूनी का मैं चेहरा भी देखना नहीं चाहती... और यदि तूने जो कहा वह सत्य है तो मैं अब जीना नहीं चाहती। मैं भी अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी ।'
'क्यों री? क्या उस परदेशी कुमार जैसा मेरा रूप नहीं है क्या ? उसके जितनी संपत्ति नहीं है क्या मेरे पास ? मुझमें क्या कमी दिखायी देती है तुझको ?'
'कमी ? तू तो काला कौआ है... उस हंस-से परदेशी के आगे... वह यदि कमल है तो तू निरा धत्तूर है... शैतान है तू तो ... खूनी... ।'
'चुप मर... तेरी जीभ लंबी होती जा रही है...' इस छुरी से काट डालूँगा ।' तस्कार चिल्लाया और छुरी उठाये राजकुमारी की तरफ लपका ।
उसी समय तस्कर के सिर पर जोर से मुष्टिप्रहार हुआ... और वह .... 'हाय'... करता हुआ ज़मीन पर ढेर हो गया ।
'दुष्ट... अबला पर हाथ उठाकर अपनी ताकत बता रहा है... परदेशी राजकुमार परलोक में गया है कि साक्षात् काल बनकर तेरे सामने खड़ा है... देख ले ज़रा ।'
और विमलयश अपने स्वरूप में प्रगट हुआ ।
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