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चोर का पीछा
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किया। विमलयश भी चुपके से उसी के पीछे सरक गया। दोनों किले के बाहर निकल आये ।
रात का तीसरा प्रहर प्रारंभ हो चुका था। चोर वेग से आगे बढ़ रहा था... विमलयश भी उतनी ही तीव्रता से उसके कदमों से कदम मिला रहा था। चोर सशंक नजरों से बराबर पीछे देख रहा था... पर विमलयश अदृश्य होने से उसे देखना संभव नहीं था ।
एक बहुत बड़े वटवृक्ष के नीचे दोनों पहुँचे। वृक्ष के नीचे एक बड़ी चट्टान थी। चोर ने उस चट्टान को छुआ और कुछ ही पलों में वह चट्टान खिसकने लगी... चोर तुरंत ही अंदर के तलघर में उतर गया। फिर उसने चट्टान से द्वार बंद कर दिया। विमलयश ने कुछ पल बीतने दिये... फिर एक ही लात मारकर चट्टान को दूर किया और वह खुद भूमिगृह में उतर पड़ा।
करीब पचास सीढ़ियाँ उतरा कि एक बड़े कमरे में वह आकर खड़ा रहा। कमरे को चारों ओर से देखा... तो पूर्व दिशा में गुप्त द्वार-सा कुछ लगा। उसने धक्का मारा, दरवाज़ा खुल गया, भीतर प्रवेश किया तो देखा सामने ही ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ थीं। वह कुछ देर रूका रहा। ऊपर से तस्कर की आवाज आ रही थी । किसी स्त्री के रोने की आवाज भी थी । विमलयश ने अनुमान लगा लिया : 'राजकुमारी यहीं पर है।' उसका मन प्रसन्न हो उठा। कुछ आश्वस्त भी हुआ ।
वह एक ही साँस में सीढ़ियाँ चढ़ गया तो उसने बिलकुल सामने राजकुमारी को बैठी हुई देखा। उसके सामने तस्कर खड़ा था । विमलयश अदृश्य रूप से गुपचुप राजकुमारी के निकट एक ओर कोने में खड़ा हो गया ।
उसने राजकुमारी को देखा... उसका दिल रो पड़ा ।
विमलयश चुपचाप राजकुमारी को देखता रहा । बिना तेल की सूखी उसकी केशराशि... राहुग्रस्त चन्द्रमा - सी फीकी उसकी मुखकांति ! सूखे हुए फल-से निष्प्राण होंठ... मरणासन्न हिरनी सी निस्पंद आँखें !
निराभरण राजकुमारी को देखकर विमलयश की आँखें भर आयीं... उसे लगा राजमहल में फूलों के बीच पली हुई यह कली आज कितनी पीड़ा उठा रही है? एक विचित्र अहसास भरी पीड़ा से विमलयश का मन कसकने लगा... इतने में तस्कर चिल्लाया :
'देख री छोकरी... ये खूबसूरत गहने किसके हैं ?
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