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चोर का पीछा
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३६. चोर का पीछा | Maiy
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गुणमंजरी!
शुभ्र स्फटिक-सी दीप्ति से अनुप्राणित देह! विशाल, लोचन, प्रशस्त वक्षप्रदेश... समुन्नत भालप्रदेश पर कृष्ण पक्ष सी झुलती श्याम अलकावली... राजकुमारी को दुष्ट तस्कर एक अज्ञात गुफा में ले आया था। जब गुणमंजरी ने अपने पिता का भेस बनाये हुए एक चोर को पहचाना, तब वह चीखती हुई तत्क्षण बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ी। ___ रात बैरन बन चुकी थी। वह होश में आयी। उसका फूल-सा नाजुक दिल फट पड़ा। असह्य वेदना से वह व्याकुल हो उठी। आँखों की करूण वेदना आँसुओं में पिघलती हुई बहने लगी। विचारशून्य हो गयी। वह रात भर रोती रही। वहाँ उसे दिलासा देनेवाला था भी कौन? कौन उसके सिर पर हाथ फेरकर उसे सहलानेवाला था?'
सुबह हुई। तस्कर ने सुंदर कपड़े पहने... क़ीमती गहने धारण किये । पान चबाकर होंठ लाल किये... और गुणमंजरी के पास आया । गुणमंजरी सावधान हो गयी, वह अपने शरीर को सिमटकर बैठ गयी।
'डर मत, राजकुमारी! यहाँ तुझे किसी भी बात का दुःख नहीं होगा। तेरे पिता अगर ऊपर के नगर का राजा हे तो मैं इस भूगर्भनगर का राजा हूँ। जितनी दौलत मेरे पास है, उतनी शायद तेरे पिता के पास भी नहीं होगी।
और मेरे सामने देख... क्या कमी है मुझमें? मेरी काया कहाँ कम सुंदर है? एक स्त्री को क्या चाहिए? जो चाहिए वह सब कुछ मेरे पास है । तुझे मैं अपनी रानी बनाऊँगा... हाँ... हाँ... हाँ...'
तस्कर के अट्टहास से विशाल गुफा की वह गुप्त आवाज गूंज उठी। राजकुमारी काँप उठी। उसकी आँखें डर के मारे विस्फारित रह गयी।
'बोल मेरी बात मान रही है या नहीं? मुझे जवाब दे इसी वक्त और यहीं पर ।' 'नहीं, यह कभी नहीं हो सकता।'
राजकुमारी तपाक से खड़ी हो गयी। उसकी आँखों का भय चला गया। आँखों में से शोलें भड़कने लगी। उस
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