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राजा भी लुट गया
२४१ मेरी भी वही हालत हुई... राजकुमारी को भी वह दुष्ट उठा ले गया ।'
महाराज का स्वर वेदना से भरा था। 'महाराजा, वह पंखा मंगवाइए - मैं महारानी को होश में लाता हूँ।'
पंखा लाया गया। विमलयश ने पंखे से रानी को हवा की। रानी होश में आयी। उसने विमलयश को अपने सामने देखा। वह विमलयश से लिपट गयी। और दहाड़ मारकर रोने लगी - 'बेटा, मेरी राजकुमारी को ले आ, तू जो मॉगेगा मैं तुझे दूंगी!' __ 'आप रोइए नहीं, माँ! गुणमंजरी को वह चोर यदि पाताल में भी ले गया होगा... तो भी मैं ले आऊँगा। समुद्र में छिपा होगा, तो भी उसे पकड़कर हाज़िर कर दूंगा। अब आप चिंता मत करें... शांत हो जाइए... क्या आपको विमलयश पर भरोसा नहीं?'
'बेटा, भरोसा तो पूरा है तुझ पर... पर यह चोर तो...'
'जल्मी है ना? कितनी भी जुल्मी हो... मैं उसे जिंदा पकड़कर लाऊँगा। मुझे इतना कुछ मालूम नहीं था... आज ही मालती ने राजकुमारी के अपहरण
की बात कही... आप निश्चिंत रहें।' ___ 'नहीं... नहीं... विमलयश, तुझे यह साहस नही करना चाहिए। हो न हो वह चोर तुझ पर ही हमला कर दे... महाराजा की आँखे गीली हो गयीं।
'मुझे वह उठा जाएगा, यही कहना चाहते हैं न आप? ठीक है, आज तक जो बना है... उसे देखते हुए आप ठीक सोच रहे हैं... पर आपने अभी विमलयश का पराक्रम देखा नहीं है... विमलयश की कला देखी है, पर ताकत नहीं देखी है। आज मौका मिला है। आप मेरी ताकत भी देख लें। श्री नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव से क्या संभव नहीं है, इस संसार में? आप निश्चित रहें| चोर का अंत अब निश्चित है। मुझे अपने महामंत्र पर पूरा भरोसा है!'
'और यदि तूने चोर को पकड़ लिया... राजकुमारी को सुरक्षित ले आया वापस... तो मेरा आधा राज्य तेरा! और राजकुमारी भी तेरी!'
विमलयश के शरीर में सिहरन फैल गई... 'सात कौड़ियों मैं राज्य' वाली बात आकार ले रही थी...। उसे अपनी महत्त्वाकांक्षा की सिद्धि करीब नज़र आने लगी। उसने राजा-रानी को प्रणाम किया और अपने महल में चला आया ।
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