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राजा भी लुट गया 'क्या सच बता रही है या मज़ाक कर रही है?'
'कुमार, तुम्हारे साथ क्या मज़ाक करूँगी? तुम से मैं कब झूठ बोली हूँ? बिलकुल सही बात है। राजमहल में तो करूणता छा गई है... सभी रो रहे हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है।' ___ 'पर मालती, यह सब हुआ कैसे? कब हुआ? कुछ मालूम है तुझको? विमलयश ने अस्वस्थ होकर मालती से सवाल पूछ डाले।
'हाँ... मैं सारी बात जानकर हीं यहाँ पर दौड़ आई हूँ। राजमहल से सीधी यहाँ चली आई हूँ| सुनो वह सारी घटना। मालती विमलयश के समीप बैठ गयी। 'गत रात्रि में महाराजा स्वयं चोर को पकड़ने के लिए अपने चुनिंदा सैनिकों के साथ निकले थे। उन्होंने किले के चारों द्वार पर सशस्त्र सैनिकों को तैनात किया था... और खुद पूर्व दिशा के मुख्य दरवाज़े पर हथियारों से लैस होकर खड़े रहे थे।
पहला प्रहर पूरा होने की तैयारी थी, कि एक आदमी गधे पर कपड़े की गठरी डालकर पूर्व दिशा के दरवाज़े से नगर की तरफ आता दिखाई दिया। महाराजा ने पूछा :
'कौन है तू? कहाँ जा रहा है इस वक्त?' 'महाराज, मैं आपका ही सेवक हूँ... रजक-धौबी हूँ, महारानी साहिबा के कपड़े मैं ही धोता हूँ।' ‘पर अभी इतनी रात गए कहाँ जा रहा है?' 'कपड़े धोने के लिए, राजन!' 'पागल हो गया है क्या? आधी रात को कपड़े धोने जाता है?' 'महाराज क्या करूँ? महारानी साहिबा तो पद्मिनी स्त्री हैं, उनके कपड़ों की गंध से खिंचकर दिन को भँवरे मँडराने लगते हैं... कपड़े धोने नहीं देते... इसलिए मैं रात को ही उनके कपड़े धोता हूँ | सरोवर के किनारे पर चला जाऊँगा... और शांति से कपड़े धोऊँगा...।' धोबी ने दोनों हाथ जोड़कर राजा से निवेदन किया।
'तेरी बात सही है... पर तुझे पता है कि आठ-आठ दिन से चोर का उपद्रव मचा हुआ है?'
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