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राजा भी लुट गया
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प्राभातिक कार्यों से निपटकर विमलयश आज राजमहल में जाने की सोच रहा था। सात-आठ दिन से वह राजसभा में या राजमहल में गया ही नहीं था। मालती से चोर के कारनामें सुनकर वह स्तब्ध था। इसी बारे में वह महाराजा से मिलना चाहता था। ____ मालती विमलयश के लिए दुग्ध पान तैयार करके बगीचे में अपने घर चली गई थी। घर का काम आननफानन में निपटकर सीधी राजमहल में दौड़ी थी। चोर का नया उपद्रव क्या हो रहा है - यह जानने के लिए वह बेकरार हो उठी थी।
चोर का ताजा पराक्रम सुनकर मालती की साँस अटक गयी थी। उसका कलेजा फटा जा रहा था। वह हक्की-बक्की रह गयी। वह सीधे दौड़ते हुए आयी विमलयश के पास... और आँखो में आँसू बहाती हुई उसके सामने ज़मीन पर लुढ़क गई मालती के हालात देखकर विमलयश को लगा कि ज़रूर कोई बड़ा अनर्थ हो गया है। उसने मालती से पूछा :
'मालती क्यों इतनी रो रही है? क्या बात है? क्या तेरा पति लुट गया क्या?' 'नहीं, ओ कुमार..! पति लुट जाता तो भी क्या चिंता थी? क्या एतराज था? यह तो खुद महाराजा लुट गए।' 'ओह, पर तू इतना क्यों रो रही है...?' 'कुमार... सारी बात सुनकर तुम भी रो पड़ोगे।' 'क्या हुआ... कुछ बता तो सही!' 'क्या कहूँ, कुमार... कुछ सूझता नहीं है...' कहकर मालती फफक पड़ी।
विमलयश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी... 'तू मत रो... पर कुछ मुझे बता तो सही...'
'कुमार... राजकुमारी गुणमंजरी का अपहरण हो चुका है... शायद चोर ही उठा ले गया है।'
'क्या कहती है तू...?' विमलयश खड़ा हो गया। मालती के दोनो कंधे पकड़कर उसे झकझोराः
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