________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नयी कला-नया अध्ययन सुरसुंदरी को रथ से उतरते देखा। उसे ताज्जुब हुआ... 'अरे, यह तो सुरसुंदरी है! यहां कैसे आयी? अभी, इस वक्त? और फिर आयी भी अकेली लगती है? महारानी तो साथ है ही नहीं। इस तरह पहले तो कभी आयी नहीं, सुरसुंदरी। आज क्या बात है? ओह... माँ को खबर तो कर दूं।' अमरकुमार तुरंत माँ के पास जाकर बोला! माँ, राजकुमारी आयी है अपनी हवेली में!'
धनवती चौंकती हई खड़ी हुई और उसे लेने के लिए सीढ़ी पर पहुँची और इतने में तो सुरसुंदरी ने धनवती के पैर छुए | ___ 'अरे, बेटी, पर यों यकायक? मुझे कलहाना तो था? मैं रसोई में थी। यह तो अमर ने मुझसे कहा तो मालूम हुआ कि तू आयी है।'
'माताजी, इसमें कहना क्या?' बोलने ही जा रही थी कि 'अमर का घर तो मेरा घर है न?' पर शब्द उसके गले में अटक गये। अमर उसके पास ही आकर खड़ा था। धनवती सुरसुंदरी को अपनी ओर खींचती हुई उसे अपने कमरे में ले गयी। अमर भी दोनों के पीछे-पीछे चला आया कमरे में | धनवती ने राजा - रानी की कुशलता पूछी। दासी आकर दूध के प्याले और मिठाई रख गयी।
'माताजी, मैं आपसे एक बात पूछने आयी हूँ यहाँ । मेरी माँ ने ही मुझे यहाँ भेजा है आपके पास ।' 'पूछ न, जो भी पूछना हो...।'
'दरअसल...' सुरसुंदरी को झेंपते देखकर अमर ने कहा, 'क्यों कोई गुप्त बात है क्या? तो मैं बाहर चला जाऊँ ।' ____ 'नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं हैं... क्या अभी अपने नगर में कोई विदुषी साध्वीजी पधारी हुई है?' प्रश्न पूछकर सुरसुंदरी ने अमरकुमार की
ओर देख लिया। उसके चेहरे पर परेशानी और अचरज की रेखाएँ खिंच आयी थीं। सुरसुंदरी मन-ही-मन हँसी। ___ 'क्यों बेटी, साध्वीजी के बारे में पूछ रही है?' धनवती को भी आश्चर्य हो रहा था।
'मुझे उनके पास धर्म का बोध प्राप्त करने जाना है।' साध्वीजी के पास धर्म का ज्ञान प्राप्त करना है।' धनवती के लिए यह दूसरा आश्चर्य था। ___ 'पर बेटी... तूने चौंसठ कलाओं में निपुणता प्राप्त की है... और फिर तू तो राजकुमारी है... तुझे साध्वीजी के पास क्यों?'...
For Private And Personal Use Only