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राजमहल में विमलयश ने दो क्षण सोचा और कहा : 'महाराजा, समुद्री किनारे चुंगी नाके का अधिकारी पद मुझे चाहिए।' 'बड़ी खुशी के साथ! चुंगी नाके के अधिकार का पद तो तेरा होगा ही, साथ ही चुंगी से आनेवाला सारा धन तेरा रहेगा। उस पर तेरा ही अधिकार होगा।'
'आपकी बड़ी कृपा हुई मुझ पर ।'
'विशेष में अब तुझे मालिन के बगीचे में नहीं रहना है। राजमहल के पास ही मैं तुझे एक सुंदर महल दे देता हूँ, तुझे उस महल में रहना है।'
विमलयश की निगाह राजसभा में बैठी हुई मालती पर गिरी । मालती का चेहरा उतर गया था। फिर भी विमलयश ने महाराजा की बात मान ली। 'महाराजा, मैं कल सवेरे आ जाऊँगा महल में ।' राजसभा पूरी हो गयी। विमलयश मालती के साथ घर पर पहुँचा ।
रास्ते में मालती एक अक्षर भी नहीं बोली। विमलयश ने घर पर आते ही मालती से कहा :
'मालती।' मालती की आँखो में आँसू थे। 'तू रो रही है? क्यों? मैं चुंगी नाके का मालिक हुआ यह तुझे अच्छा नहीं लगा?'
'वह तो अच्छा लगा, पर तुम कल यहाँ से...' 'अरे वहाँ! मैं कोई अकेले थोड़े ही जाऊँगा। क्यों तू नहीं आएगी मेरे साथ?'
'मैं? अरे... मैं तो अभी चल दूं... इसे रोटी कौन बना देगा? अपने पति की तरफ उंगली करते हुए कहा।
'ओह! ओफ! अरे... यह तो अपने महल पर आ जाएगा भोजन करने के लिए, और यहाँ पर बगीचा भी संभालता रहेगा। ___मालती ने अपने पति से पूछ लिया... पति की अनुमति मिल गयी। मालती तो जैसे आकाश में उड़ने लगी। 'मालती, महल में जाकर नाचना... अब भोजन कब तैयार होगा...?'
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