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सवा लाख का पंखा
२१०
'बगीचा तो बहुत ढंग से सम्हाला है... फूलों के साथ-साथ तरह-तरह के
फल भी होते हैं क्या?'
'क्यों नहीं? करीबन दस-बारह प्रकार के फल होते हैं।'
'तब तो रोजाना मुझे फलाहार मिलेगा।'
'तुम जो चाहोगे वह आहार मिल जाएगा।'
मालती का स्वभाव विमलयश को भा गया ।
सूर्यास्त के पहले ही भोजन वगैरह से निपटकर विमलयश ने श्री नवकार महामंत्र का जाप कर लिया। इतने में तो माली बाहर गाँव से आ गया। मालती ने अपने पति को विमलयश के आगमन की बात कही । विमलयश की उदारता- शालीनता की जी भर कर प्रशंसा की । माली भी प्रसन्न हो उठा ।
विमलयश की रात वैसे तो शांति से बीती, पर वह घंटों तक सुरसंगीत नगर की स्मृतियों में डुबा रहा। नंदीश्वर द्वीप को स्मृति यात्रा भी की । अमरकुमार के विचार भी आ गये। वैसे भी फुरसत का समय बीती हुई बातों को याद करने का हीं होता है !
दूसरे दिन सबेरे नित्यकर्म से निवृत्त होकर विमलयश ने मालती को पच्चीस मुहरें देते हुए कहा :
'मालती, इन पैसों से बाज़ार में जाकर अच्छे बढ़िया बर्तन वगैरह खरीद लाना। अच्छे बर्तन तो घर की शोभा बढ़ाते हैं !'
मालती नाच उठी। बाजार में जाकर अच्छे-अच्छे बर्तन खरीद लायी । विमलयश ने मालती के घर को पूरा ही बदल दिया। मालती ने विमलयश की सेवा में कोई कमी नहीं रखी। कुछ ही दिनों में तो उसने विमलयश को पूरे बेनातट नगर से परिचित करवा दिया ।
एक रात को विमलयश के दिमाग में एक विचार कौंधा ... ।
अमरकुमार का मिलन तो इसी नगर में होनेवाला है, परंतु वह मिले इससे पहले मुझे मेरे वचन को सिद्ध कर देना चाहिए । जब उन्होंने 'सात कौड़ियों में राज्य लेना!' वैसा लिखकर मेरा त्याग किया है । बचपन में, नादानी में, मेरे कहे गये शब्द उन्होंने वापस मुझ पर फेंके हैं, तो मुझे भी उनकी चुनौती स्वीकार कर अपने शब्दों को साकार बना देना चाहिए। इसके बाद उनका मिलना हो तब ही मैं आत्मविश्वास से उनके साथ शेष जीवन गुज़ार सकूँगी, वरना अपनी आदत से मजबूर अमरकुमार मुझे ताना कसने से चूकेंगे नहीं ।
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