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सवा लाख का पंखा
२०९ 'एक शर्त मंजूर हो तो पहनूं?' 'क्या शर्त है तुम्हारी?'
'तुम्हें मुझे 'तू' कहकर बुलाने की। मैं कोई इतनी बड़ी थोड़ी ही हूँ...! बोलते तो वह बोल गयी, पर फिर शर्म से सर झुका लिया। विमलयश ने हँस दिया।
'अच्छा... मैं तुझे मालती कहकर ही बुलाऊँगा!' 'तब तो मुझे बड़ा अच्छा लगेगा।'
मालती चली गयी। विमलयश ने अपने कपड़े वगैरह इकठ्ठा कर रख दिये। कमरे का दरवाज़ा बंद किया और ज़मीन पर ही आराम करने के लिए लेट गया । उसे मीठी नींद आ गयी... जब वह जगा तब दिन का चौथा प्रहर प्रारंभ हो गया था। उसने दरवाजा खोल दिया । तुरंत ही मालती हाज़िर हो गयी। ___ 'बड़ी मीठी नींद आ गयी मुझे तो... कुछ ख्याल ही नहीं रहा!' विमलयश ने कहा।
'यह कमरा ही ऐसा है... उद्यान के फूलों की खुशबू सीधी यहाँ पर आती है। सबेरे-सबेरे तो देखना, जूही के फूलों की खुशबू से वातावरण भर जाएगा।' 'मालती, इस नगर के राजा का नाम क्या है?' 'गुणपाल!' 'उसके बेटे कितने हैं? 'केवल एक बेटी ही है...। बेटा है ही नहीं! बेटी बड़ी प्यारी और सलोनी
'क्या नाम है उसका?' 'गुणमंजरी!' 'अच्छा... अरे मालती... तेरा आदमी तो दिखा ही नहीं!' 'वह शाम को आएगा... बाहर गया हुआ है।' 'तुम दोनों की कमाई कितनी है?'
'गुजारा हो जाता है...। महाराजा की कृपा से यह मकान रहने के लिए मिला है...। इस बगीचे को सम्हालते हैं!
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