________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रीत न करियो कोय
१९५ यह कार्य सौंपा है ना? मुझे राज्य लेना ही होगा। हाँ, मैं नवकार मंत्र के सहारे ही राज्य लूँगी। फिर उससे कहूँगी... 'देख, मैंने सात कौड़ियों में राज्य ले लिया... अब सम्हाल तू इस राज्य को।'
मेरे पापकर्मों का उदय तो वैसे भी समाप्त हो ही गया है। अब पुण्यकर्म जग गया है। ऐसा प्रेम भरा विद्याधर राजा भाई के रूप में मुझे मिल गया है... फिर राज्य प्राप्त करना यह कोई बड़ी बात नहीं है!
सुरसुंदरी अमरकुमार के मिलन के विचारों में खो गयी। इतने में तो एक के बाद एक चारों रानियाँ उसके कक्ष में आयीं। चारों के चेहरों पर ग्लानि थी, विषाद था... आकर वे चुपचाप सुरसुंदरी के पास बैठ गयीं। ___ सुरसुंदरी उठकर बैठी। उसने चारों भाभी रानियों के सामने देखा, चारों की दृष्टि जमीन पर गड़ी हुई थी। 'क्यों? इतनी उदासी क्यों, मेरी प्यारी भाभियों?' जवाब में आँसू और सिसकियाँ! सुरसुंदरी अस्वस्थ हो उठी। 'क्या हुआ भाभी?' सुरसुंदरी ने सबसे बड़ी रानी मणिप्रभा के चेहरे को अपनी हथेलियों में बाँधते हुए पूछा : मणिप्रभा बोल नहीं सकती है... उसने अपना सिर सुरसुंदरी की गोद में रख दिया। वह फफक-फफककर रो पड़ी। सुरसुंदरी भी बरबस रोने लगी।
'आज यह सब क्या हो रहा है? मेरी समझ में नहीं आ रहा है कुछ!' सुरसुंदरी रोती हुई बोली। मणिप्रभा ने सुरसुंदरी के आँसू पोंछे : 'दीदी... तुम मत रोओ।' 'तुम सब जो रोयी जा रही हो... मैं कैसे देखू तुम्हारे ये आँसू?' 'अब आँसुओं के सिवा और क्या रखा है, हमारे लिए, दीदी?' 'क्यों ऐसी बुरी बातें कर रहे हो? क्या हो गया है तुम्हें?' 'और क्या बोलूँ! तुम्हारे भाई ने हमसे कहा...' 'क्या कहा भाभी?' 'अब बहन कुछ दिन की ही महेमान है।'
For Private And Personal Use Only