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छोटी सी बात
'तू इस बात को मामूली समझता है...? पर मेरे लिए तो यह काफी महत्त्वपूर्ण बात है... तू चाहे इसे गंभीरता से न ले।' _ 'पर बात तो, सात कौड़ियों की ही है न? मैंने तेरी सात कौड़ियों ले लीं, इससे तू ऐसी लाल-पीली हो रही है... जैसे मैंने तेरा राज्य छीन लिया हो। सात कौड़ियों में क्या तुझे राज्य मिल जानेवाला था? राजकुमारी हुई तो क्या हुआ? इतना घमंड? इतना गरूर?' ___ 'अरे हाँ! मैं एक बार नहीं, दस बार राजकुमारी हूं, और सात कौड़ियों का मैं कुछ भी करूँ, तुझे इसमें क्या लेना-देना? मैं राज्य भी ले सकती हूँ... समझा अमरकुमार! सात कौड़ियों में तो राज्य ले लूं पूरा । तू अपने आपको समझता क्या है? एक तो चोरी करता है और उपर से सफाई पेश करता है! मुझे उपर से उपदेश सुना रहा है?'
_ 'सुरसुंदरी गुस्से से काँप रही थी। उसका गौर चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसने अपनी किताबें उठायी और अमरकुमार को बगैर बताये पाठशाल में से चली गयी। दूसरे छात्र-छात्रा सब अमरकुमार और सुरसुंदरी की मैत्री से परिचित थे, इसलिए उन्हें यह बात बिलकुल नामुमकिन जान पड़ती थी कि उन दोनों में ऐसी छोटी-सी बात को लेकर इतनी कटुता पैदा हो जाए। अमरकुमार अपनी जगह पर बैठा हुआ था। उसने अपना सिर पुस्तक में छिपा रखा था। ___पंडितजी की अनुपस्थिति में अमरकुमार ही पाठशाला को सम्हालता था। उसने छात्र-छात्राओं को छुट्टी दे दी। सभी छात्र-छात्राएँ चले गए अपने-अपने घर | फिर भी अमरकुमार अकेला बैठा रहा गुमसुम होकर | उसका तरूण मन बेचैन था । एक पल वह रो देता था, दूसरे ही पल उसे गुस्सा आता था। 'बस, केवल सात कौड़ियों के लिए सुंदरी ने कितने सारे विद्यार्थियों के बीच मेरा मुँह तोड लिया। मेरा अपमान किया... मुझे चोर कहा! मुझे क्या मालूम कि वह इतनी कंजूस होगी। मुझे क्या पता वह सात कौड़ियों के लिए मेरे प्यार को चूरचूर कर देगी... मैं तो उस पर कितना भरोसा रखता था । मुझे तो लगा था कि वह जब जगेगी तो अपने हिस्से की मिठाई देखकर चकित हो जायेगी... मेरी ओर देखती रहेगी आश्चर्य से | मुझसे पूछेगी, तब मैं कह दूँगा... 'यह तो तेरे पैसों से दावत दी है...' तब वह हँस देगी... अपने हिस्से में से मुझे
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