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पिता मिल गये
दोनों तीसरे उपवन में आये | वहाँ एक सुंदर सरोवर था। यक्ष ने कहा : 'बेटी, इस सरोवर में से तू जो माँगेगी वह जानवर प्रगट होगा। बस, इस उपवन की एक चुटकी रेत लेकर सरोवर में डाल ।' __सुरसुंदरी ने चुटकी रेतभर लेकर सरोवर में डाली और बोली; 'हिरन का एक जोड़ा प्रगट हो!' और सरोवर में से हिरन-हिरनी का एक लुभावना जोड़ा बाहर आया! सुरसुंदरी ने उस जोड़े का अपने उत्संग में ले लिया! यक्ष हँस पड़ा।
'बेटी, अभी इसे छोड़ दे! फिर तेरी इच्छा हो तब यहाँ चली आना और खेलना...! अभी तो चौथा उपवन देखना बाकी है।'
दोनों चौथे उपवन में आये। यहाँ पर रंगबिरंगे लतामंडप छाये हुए थे। सैकड़ों सुगंधित फूलों की बेलें इधर-उधर फैली थी। यक्ष ने कहा : सुंदरी, यहाँ तुझे जिस मौसम के फूल चाहिए... वे तुझे मिल जाएंगे। तुझे मनपसंद ऋतु का आह्वान करना है।'
सुरसुंदरी ने तुरंत ही वसंत ऋतु का आह्वान किया... और वसंत ऋतु के फूलों से उपवन महक उठा!
'यह मेरे चार उपवन हैं। अभी तक तो इन उपवनों में मेरे अलावा और कोई नहीं आ सकता था, पर अब तेरे लिए यह उपवन खुले हैं | जब भी मन हो यहाँ घूमने चले आना। तेरा समय भी आनंद से व्यतीत होगा। मैं रोजाना सुबह और शाम तेरे पास आऊँगा। यहाँ तू और किसी भी तरह का डर मत रखना | तू यहाँ निर्भय व निश्चित रहना।' ___ यक्ष आकाश में अदृश्य हो गया। सुरसुंदरी स्तब्ध होकर ठगी-ठगी सी खड़ी रह गयी।
यह सारा प्रभाव श्री नवकार का है... वन में उपवन मिल गया! यक्ष प्रेम भरे पिता बन गये । श्मशान भूमि जैसे स्वर्ग बन गयी। ओह! इस महामंत्र की महिमा अपार है! गुरूमाता ने मेरे पर कितना उपाकर किया है यह मंत्र देकर! अगर आज मेरे पास यह, मंत्र नहीं होता तो? उसने मन ही मन गुरूमाता को नमस्कार किया।
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