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आखिर, जो होना था! क्या किया, अमर? एक मासूम नारी से इस तरह का क्रूर बदला लिया? और यह भी इस कुख्यात द्वीप पर जहाँ इन्सान की जान की कोई क़ीमत नहीं होती! ओह, अमर! तूने सब कुछ भुला दिया। अभी आज सुबह ही तो तूने कितना प्यार किया था? कितनी प्यार-भरी बातें की थी? क्या वह सब झूठ
था? फरेब था...? तुने प्यार का जाल रचाया था... हाय! मैं भोली-भाली तेरी बुरी नीयत को न समझ पायी... और! अमर... अमर... मेरे अमर!'
सुरसुंदरी विचारों की आँधी में खड़ी न रह सकी। वह बेहोश होकर गिर गयी...। वहाँ उसे कौन हवा करनेवाला था?
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