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विद्या विनयेन शोभते जितनी जगहें थी... सब उसने ढूंढ़ निकाली। कहीं पर भी चोर का अता-पता लगा नहीं। यों करते-करते रात हो गयी।
अभयकुमार नगर के एक बड़े चौक के पास से गुजरा | वहाँ पर चार रास्तों का चौराहा था। काफि लोगों की भीड़ वहाँ पर खड़ी थी। अभयकुमार ने किसी आदमी से पूछा :
'भाई, बात क्या है? ये सब लोग यहाँ पर खड़े क्यों हैं?' उस आदमी ने कहा :
'यहाँ पर थोड़ी देर में नाटक होनेवाला है...ये सारे लोग नाटक देखने के लिये यहाँ पर खड़े हैं!
अभयकुमार ने अपने मन में कुछ सोचा और वह नाटक के मंच पर आ पहुँचा। नाटक करनेवाली मंडली अंदर के भाग में परदे के पीछे कपड़े बदलकर साज-सज्जा कर रही थी। अभयकुमार नाटक-मंडली के मालिक की इजाजत लेकर स्टेज पर आ गया और अपनी ऊँची आवाज में लोगों से कहा :
'प्यारे नगरवासियों, सुनिये, नाटकमंडली को तैयार होने में कुछ देर है... तब तक मैं तुम्हें एक मजेदार कहानी सुनाना चाहता हूँ... तुम सब ध्यान से सुनना : ___ 'एक छोटा पर बड़ा रमणीय गाँव था गोपालपुर | वहाँ पर गोवर्धन नामक सेठ रहते थे। उनकी एक बेटी थी जिसका नाम था रूपवती । रूपवती सचमुच सुंदर थी... पर सेठ के गरीब होने से उनकी बेटी के साथ कोई शादी करने को तैयार नहीं हो रहा था। सेठ को अपनी बेटी की बड़ी चिंता रहती थी। रूपवती को भी काफी दुःख होता था। वह अपने योग्य पति को पाने के लिये रोजाना भगवान से प्रार्थना करती थी। इसके लिये वह रोज गाँव के बाहर तालाब के किनारे पर बने हुए कामदेव यक्ष के मंदिर में जाकर कामदेव की पूजा करती थी। कामदेव की पूजा के लिये फूल तो जरुरी होते हैं। फूल खरीदने के लिये उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए वह नित्य चोरी-छुपी से बगीचे में घुसकर वहाँ से फूल तोड़ लाती। __ एक दिन बगीचे के माली ने उसे फूलों की चोरी करते हुए पकड़ ली। पर रूपवती की सुंदरता देखकर वह उस पर लट्ट हो गया। वह रूपवती को सताने लगा...रूपवती की मजाक करने लगा।
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