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विद्या विनयेन शोभते
७३ ___ मातंग के पास 'अवनामिनी' नाम की विद्याशक्ति थी। उस विद्या को याद करने से ऊपर रही हुई चीज नीचे आ जाती। और 'उन्नामिनी' नाम की विद्या का स्मरण करने से वह चीज जहाँ की तहाँ वापस पहुँच जाती थी।
वह दूसरे दिन सुबह के अंधेरे में बगीचे के पास चला गया । दीवार के इस पार खड़ा रहकर उसने डाली को लक्ष्य कर के 'अवनामिनी' विद्या का स्मरण किया और आम की डाली नीचे झूक आई। उसने फटाफट आम तोड़े...टोकरी में भर लिये और 'उन्नामिनी' विद्या का स्मरण किया तो डालियाँ वापस अपनी जगह पर चली गई।
आम की टोकरी लेकर वह जल्दी-जल्दी कदम भरता हुआ अपने घर पर पहुँच गया। पत्नी को आम दे दिये| पति-पत्नी दोनों ने बड़े मजे से आम काट-काट कर खाये...और हँसते-हँसते राजा के चौकीदारों की आँखों में धूल डालने पर मजाक करते रहे!
सबेरे-सबेरे इधर जब राजा श्रेणिक और रानी चेल्लणा बगीचे में घूमने को निकले तब राजा की निगाहें वृक्ष पर पड़ी। उसने वहाँ पर आम नहीं देखे : 'अरे...रोजाना तो इस पेड़ पर आम कितने सारे दिखाई देते थे, आज तो पूरी डाली बिल्कुल खाली है। क्या बात है? आम तोड़े किसने? वह भी मेरी इजाजत के बगैर?' राजा ने माली को बुलाकर उसे डाँटते हुए पूछा | माली बेचारा सकपका गया। उसे कुछ भी पता नहीं था। बगीचे में तो कोई आया नहीं था। मातंग कहाँ बगीचे के अंदर आया था? किसी के पदचिन्ह भी वहाँ थे नहीं!
राजा ने तुरंत ही महामंत्री अभयकुमार को बुलाकर सारी बात कही और कहा : 'कहीं से भी चोर को पकड़कर मेरे समक्ष हाजिर करो।' अभयकुमार यानी बुद्धि का बादशाह! अभयकुमार यानी अक्कल का खजाना! अभयकुमार यानी चतुराई का भंडार!
उसने बड़े-बड़े चोरों को चुटकी बजाते हुए पकड़ लिये थे। इस चोर को भी पकड़ लाने के लिये अभयकुमार ने हॉ भर ली।
चोर को हाथ करने के लिये अभयकुमार नगर के बाहर और भीतर घूमने लगा। लोगों से मिलने लगा। सभी पर नजर रखने लगा। चोरों के छुपने की
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