________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५५
श्रेष्ठिकुमार शंख __ जंगल के बाहर एक पेड़ के नीचे वह साँस लेने के लिये बैठा। अपने जिगरजान दोस्तों की हत्या से उसका मन काँप रहा था। वह फफक-फफक कर रो पड़ा। रो-रो कर दोस्तों के गुण याद कर-कर के वह दुःखी होने लगा। सिसकियाँ भरने लगा। आखिर आँखें पौंछते हुए खड़ा हुआ। चारों दिशा में देखा और पूरब दिशा में एक गाँव उसे दिखाई दिया। शंख धीरे-धीरे कदम भरता हुआ उस गाँव की तरफ चल दिया।
एक तरफ उसे अपने माता-पिता याद आ रहे थे। घर की याद सता रही थी। दूसरी तरफ तीनों दोस्तों की करुण हत्या से उसका दिल दहल गया था... सीने पर पत्थर रखकर...दिल को मजबूत करके उसने कदम उठाये!
शंख एक छोटे से गाँव में पहुंचा।
वह काफी थका हुआ था। उसे थकान उतारने के लिये किसी अच्छी जगह की तलाश थी, जहाँ पर वह सो सके | उसे भूख भी जोरों की लगी थी, भोजन भी करना था। ___ गाँव के बाहर एक कुआँ था । पाँच-सात औरतें कुएँ पर पानी भर रही थी। शंख कुएँ के पास गया। एक औरत ने पूछा :
'कहाँ से आ रहे हो, भाई?' 'विजयवर्धन नगर से।' 'अरी चंपा, देख तो...ये भाई तेरे पीहर के गाँव से आ रहे हैं।' 'बहन मुझे प्यास लगी है...पानी पिलाओगी?'
चंपा ने शंख को पानी पिलाया। शंख ने पेट भर पानी पीया और मुँह भी धो लिया। _ 'भाई, आज मेरे घर पर ही भोजन के लिये चलो... वहीं रुकना...।' चंपा ने शंख को निमंत्रण दिया। शंख के लिए तो 'अंधा क्या चाहे-दो आँखें' जैसा हो गया | चंपा के साथ-साथ शंख उनके घर पर गया | चंपा के घर में उसका पति और उनका एक छोटा बेटा, यों तीन व्यक्ति ही रहते थे। चंपा ने शंख को बड़े प्यार से भोजन करवाया और फिर शंख एक खटिये पर सो गया निश्चित होकर।
शंख सोकर उठा तब सूरज पश्चिम की ओर ढल चुका था। चंपा गृहकार्य में व्यस्त थी। चंपा का पति भी घर पर नहीं था। शंख विचार में डूब गया... अब यहाँ से कहाँ जाना? कैसे जाना? घर पर जाऊँ? तब तो मुझे
For Private And Personal Use Only