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राजकुमार अभयसिंह
३८ आत्महत्या भी करती है, तो भी उसकी सद्गति होती है। क्योंकि धर्म सबसे बढ़कर है।
देवी ने तुरन्त ही अपने ज्ञान से देखा कि : 'वह कहाँ से मरकर यहाँ पर देवी हुई है?' उसने जंगल को देखा...अपने मृत शरीर को देखा... और लाड़ले को भी देखा!
देवी हो गई तो क्या हुआ? मातृत्व का झरना फूट निकला उसके दिल में! आखिर वह उस बेटे की माँ जो थी! राजकुमार, जामुन के पेड़ के नीचे लेटालेटा...छोटे-छोटे जामुन उठा-उठाकर खाने कि कोशिश कर रहा था।
देवी ने गाय का रूप धारण किया और राजकुमार को दूध पिलाया । गाय का रूप लेकर वह वहीं पर रही...और अपने बेटे की रक्षा करती रही।
राजकुमार हँसता है... खेलता है...दूध पीता है...और गाय के चार पैरों के बीच आकर आराम से सो जाता है।
दूसरे दिन दोपहर के समय उसी रास्ते से श्वेतानगरी का एक बहुत बड़ा व्यापारी प्रियमित्र वहाँ से गुजरा | उसने गाय के पास खेलते हुए गोरे-गोरे राजकुमार को देखा । पास खड़ी गाय को देखा । राजकुमार पर जामुन के पेड़ की छाया स्थिर बन गयी थी। प्रियमित्र ने निकट आकर राजकुमार को देखा। उसे राजकुमार के शरीर पर सभी शुभ लक्ष्ण नजर आये। उसे कुमार पसन्द
आ गया। __वैसे भी प्रियमित्र को बेटा था नहीं। उसे बेटे की बड़ी इच्छा थी...जैसे कि कुदरत ने सामने आकर उसे बेटा दिया। वह कुमार को लेकर श्वेतानगरी में आ गया। अदृश्यरूप से देवी भी उसके साथ-साथ श्वेतानगरी में आई। प्रियमित्र ने अपनी पत्नी को कुमार सौंप दिया। उसे भी राजकुमार...नन्हा-सा बेटा बड़ा प्यारा लगा। वह उसे अपने बेटे के भाँति पालने लगी।
उसका नाम रखा गया 'अभयसिंह ।' जंगल में वह शेर की भाँति निर्भय होकर रहा था...अभय-उसे डर जैसा था ही नहीं।
सेठ प्रियमित्र ने अभयसिंह को बड़े प्यार से पाल-पोष कर बड़ा किया। उसे पढ़ाया, उसे शस्त्रकला में भी निपुण बनाया।
जब अभयसिंह बीस बरस का हुआ तब, एक दिन उसकी माँ-देवी ने मध्यरात्रि के समय बेटे के समीप आकर कहा :
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