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राजकुमार अभयसिंह
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३७
रानी ने दहाड़ते हुए कहा :
‘जबान सम्हालकर बोल ... बकवास बंद कर नालायक ! ऐसा बोलते हुए शरम नहीं आती है? मैं मर जाना पसंद करूंगी, पर तेरी पत्नी तो हरगिज नहीं बनूँगी। दूर रहना... नजदिक आया तो मैं यही पर आत्महत्या कर लूँगी । '
‘अरी पागल औरत! इतना अभिमान क्यों कर रही है ? कौन आयेगा तुझे इस जंगल में बचाने के लिये ? सीधे-सीधे मेरी बात मान लोगी तब तो ठीक है, अन्यथा मैं तुझे जबरदस्ती भी पत्नी बना के रहूँगा । पर यह तो सब ठीक है... पहले एक काम कर... तेरे इस छोटे बच्चे को यहीं जंगल में छोड़ दे ! अपने लिए यह बच्चा बाधा पैदा करेगा। तू इसे फेंक दे।'
सैनिक की आँखो में बदमाशी तैरने लगी थी ।
'मेरी जान देकर भी मैं अपने बच्चे का रक्षण करूँगी... यह मेरा बेटा है...। मैं इसे किसी भी हालत में नहीं छोडूंगी।'
रानी ने राजकुमार को सीने से लिपटा लिया । पर उस शैतान हो गये सैनिक के दिल में दया कहाँ थी? उसने तपाक से रानी के हाथ में से उस मासूम बच्चे को झपटा और पास की घास में फेंक दिया।
रानी का हाथ जबरदस्ती पकड़ कर वह चलने लगा। रानी रो रही थी.... दहाड़ मारकर रो रही थी... पर उस जंगल में उसकी चीख कौन सुननेवाला था? उस पत्थर दिल सैनिक पर तो असर होने वाली थी ही नहीं! वह तो रानी को अपनी औरत बनाने के खयाल में डूबा है । उसे रानी का रूप ही दिखता है। ‘रानी एक माँ है...' यह वह सोच भी नहीं रहा था!
रानी का विलाप तीव्र होता चला...। चलते-चलते उसके कदम लड़खड़ाने लगे। अचानक वह बेहोश होकर एक चट्टान से टकरा कर पथरीली जमीन पर जा गिरी... गिरते ही जोरों की चोट लगी उसे और उसी समय उसकी मौत हो गयी।
रानी को मरी हुई देखकर सैनिक के प्राण सूख गये। उसने सोचा : 'अब यहाँ खड़े रहना खतरे से खाली नहीं रहेगा।' वह रानी के मृत शरीर को वहीं छोड़कर वहाँ से सर पर पैर रखकर भागा ! पीछे मुड़कर देखा तक नहीं उसने !
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रानी मरकर देवलोक में देवी हुई।
धर्म का यह प्रभाव था । शीलधर्म की रक्षा करते हुए यदि कोई स्त्री