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राजकुमार अभयसिंह
३९ 'वत्स, मैं जो कह रही हूँ... वह तू ठीक से ध्यान लगाकर सुनना। इस नगर के राजा थे वीरसेन । मैं उनकी वप्रा नाम की रानी थी। तू हमारा बेटा
तेरे पिता के साथ, अभी यहाँ जो राजा मानसिंह है...उसने अन्यायपूर्वक युद्ध किया था। तेरे पिता की मृत्यु हो गई। तू तब केवल एक महीने का था। मैं तुझे लेकर जंगल में ओझल हो गई, पर राजा मानसिंह के एक सैनिक ने मेरा पीछा किया... मुझे पकड़ा...और अपने शील की रक्षा करते हुए मेरी मृत्यु हो गई। मरकर मैं व्यंतर देवलोक में देवी हुई हूँ|
बेटा, यह राजा मानसिंह तेरा दुश्मन है। उसे जब यह मालूम हो जायेगा कि तू राजा वीरसेन का बेटा है... तो तुझे मारने की, तेरी हत्या कर डालने की कोशिश करेगा। __ मैं तुझे अदृश्य होने की विद्या देती हूँ। यह विद्या हमेशा तेरा रक्षण करेगी। इसके सहारे तू निर्भय-निडर होकर जी सकेगा।
अभयसिंह विस्मय से चकित होता हुआ खड़ा हुआ। उसने भावपूर्वक अपनी माँ के चरणों में वंदना की और विनयपूर्वक विद्याशक्ति को ग्रहण किया। उसने कहा :
'माँ, मुझ पर आपने बड़ी कृपा की | माँ, मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूल सकता!'
देवी ने कहा : 'बेटा, तू जब भी मुझे याद करेगा... मैं तेरी सहायता के लिये चली आऊँगी। तू किसी भी तरह की चिंता मत करना । तू निश्चिंत होकर जीना।'
अभयसिंह की खुशी की सीमा नही रही। उसने अपनी माँ-देवी को वंदना की। देवी वहाँ से अदृश्य होकर अपनी जगह पर चली गई।
राजा मानसिंह मांसाहारी था। मांसाहार के अलावा अन्य कोई भी भोजन उसे पसन्द नहीं था। ___ एक दिन भोजन तैयार करके रसोईया स्नान करने के लिये बाहर गया, इतने में वहाँ पर एक बिल्ला आया और राजा के लिये तैयार खाना खा कर भाग गया।
रसोईया घबरा उठा। राजा के लिये नया खाना बनाना होगा, पर उसके पास मांस तो था नहीं, अब क्या करना? वह गाँव के बाहर गया...जिस
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