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पराक्रमी अजानंद
१२६ राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा कर दी-'ले जाओ...इस चोर को वधस्थान पर...और वहाँ ले जाकर एक ही झटके में इसको खत्म कर दो...!' ___ अजापुत्र ने कहा : 'मेरी हत्या करने से पहले राजाजी, मेरी एक बात आप सुन लीजिए | महाराजा, कृपा करके एक कागज पर मुझे इतना लिख कर देने की कृपा करें कि 'जिस किसी ने भी चोरी की है-वैसा पाया गया तो उसकी हत्या कर दी जाएगी। क्योंकि यहाँ पर एक और चोर भी हाजिर है।'
राजा की समझ में आया नहीं...अजानंद क्या पहेलियाँ बूझा रहा है...। पर उसने गुस्से ही गुस्से में अजानंद ने जैसा कहा वैसा लिख दिया कागज पर, और कागज दे दिया अजानंद को। अजानंद ने कागज लेकर कहा : 'राजाजी, आपने जो लिखा है...उस बात का आप पालन कीजिएगा।' राजा ने कहा : 'हाँ, हाँ... मैं राजा हूँ, जरुर पालूँगा अपने वचन को!' अजानंद ने धीरे से कहा : 'महाराजा, आपके शरीर पर ये जो दो दिव्य वस्त्र हैं, ये वस्त्र मेरे हैं। इसलिए आप भी चोर हो! आप मेरी बात नहीं मानते हैं तो तलाश करवा कर पता लगवाइये कि इन वस्त्रों का सच्चा मालिक कौन है?'
राजा ने एक नौकर को भेजकर वस्त्र भेंट देनेवाले व्यापारी को बुलवाया और पूछा :
'ये दिव्य वस्त्र, जो तूने मुझे भेंट दिये हैं, वे तू कहाँ से लाया?' ___ व्यापारी ने कहा : 'महाराजा, ये वस्त्र तो एक नाई मेरे वहाँ आकर बेच गया था। बड़े कीमती वस्त्र थे तो मैंने सोचा आपको भेंट कर दूं...और मैंने आपको दे दिये।' राजा ने हुक्म दिया : 'इसी वक्त नाई को यहाँ पर हाजिर किया जाय ।'
नाई आया। उससे राजा ने पूछा : 'ये कपड़े तूने बेचे हैं? कहाँ से आये तेरे पास ये कपड़े?'
नाई की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई...। उसने सामने ही खड़े अजानंद को देखा। वह घबरा गया। उसने सच-सच बात बता दी। अजानंद ने राजा के सामने देखा।
राजा ने कहा : 'ठीक है परदेशी, ये कपड़े तुम्हारे हैं... पर किसी और ने चुराये हैं और मेरे पास आये हैं, तो मैं चोर थोड़े ही हो जाऊँगा!'
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