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पराक्रमी अजानंद
१२७ अजानंद ने कहा : 'महाराजा, तब फिर यह हार भी किसी और के द्वारा चुराया गया है और मेरे पास आया है... फिर मैं इसका चोर कैसे माना जाऊँगा?'
हार की चोरी का मामला उलझ गया। राजा ने तुरंत ही अपने कोषाध्यक्ष को बुलाया और पूछा।
कोषाध्यक्ष ने कहा : 'महाराजा, यह हार तो मैंने राजकुमारी को पहनने के लिए दिया था।'
राजा ने आनन-फानन में राजकुमारी को बुलवाया : 'बेटी, यह हार तूने पहनने के लिये लिया था?'
'हाँ पिताजी, यह हार पहनकर मैं एक दिन जलक्रीड़ा करने के लिए बावड़ी पर गई थी। वहाँ पर मेरे पालतू बंदर ने यह हार उठाया और उछलता-कूदता हुआ वह बावड़ी के बाहर दूर-दूर जंगल में भाग गया | मैंने तुरंत मेरी परिचारिका को भेजा बंदर को खोजने के लिए... पर वह बंदर हाथ नहीं आया...और हार भी नहीं मिला | मैं आप से बात करती, पर मुझे आपका डर लगा... मैंने आपसे बात नहीं की।'
हार की चोरी का रहस्य तो उलझता ही जा रहा है।
इतने में वह जो बंदर में से आदमी बना हुआ अजानंद का मित्र वहाँ खड़ा था उसने राजकुमारी को देखा। राजकुमारी पर उसको प्रेम तो था ही। वापस बंदर बनकर राजकुमारी के पास रहने की प्रबल इच्छा ने उसको जैसे मजबूर सा कर दिया। उसके पास आदमी को पशु बनानेवाला वह पानी तो था ही। अजानंद ने उसको रखने के लिये दिया था। उसने थोड़ा पानी पी लिया। पलक झपकते ही वह आदमी में से बंदर बन गया और छलांग मारता हुआ राजकुमारी की गोद में जाकर बैठ गया। __ पलभर तो सब चमक गये। राजकुमारी चीख उठी। सैनिक दौड़े। पर जैसे ही राजकुमारी ने बन्दर को पहचाना, उसने उसका सिर सहलाया। सैनिक भी बंदर को पहचान गये। ___ अजानंद ने वहाँ बंदर की सारी बात कही। बंदर कैसे आदमी बन गया था यह भी बताया। राजा तो सुनकर आश्चर्य से मुग्ध हो उठा। राजा ने अजानंद को उसके दिव्य वस्त्र वापस लौटा दिये । अजानंद ने हार राजा को दे दिया। राजा आग्रह करके अजानंद को अपने महल में ले गया। वहाँ उसका सुंदर आदर सत्कार करके उसे अनेक मूल्यावान उपहार भेंट में दिये।
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