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पराक्रमी अजानंद
११४ अजानंद चुपचाप वहाँ पर बैठ गया। व्यंतरेन्द्र ने अपना दाहिना हाथ उसके सिर पर रखा और जैसे कि चमत्कार हुआ हो वैसे अजानंद को अपनी आँखों के सामने नरक के दृश्य दिखने लगे। एक के नीचे एक वैसी सात उसने देखी। हर नरक के अन्दर अलग-अलग नरकावास देखे। नरकावास यानी नरक के जीवों के रहने की जगह | पहली नरक में तीस लाख नरकवास देखे। दूसरी नरक में पचीस लाख, तीसरी नरक में पन्द्रह लाख, चौथी नरक में दस लाख, पाँचवी नरक में तीन लाख, छठी नरक में पाँच कम एक लाख और सातवीं नरक में पाँच-ऐसे कुल ८४ लाख नरकावास उसने देखे । नरक की भूमि खून-चर्बी-मांस-पीप वगैरह गंदे-घिनौने पदार्थों से भरी पड़ी थी। चारों तरफ भयंकर दुर्गन्ध फैली हुई थी। बदबू के मारे से सर फटा जा रहा था। चारों तरफ भयानक काला स्याह अंधेरा फैला हुआ था। ___ पहली तीन नरकों में तो बाप रे! जलती हुई भट्ठी से भी ज्यादा गर्मी थी। चौथी नरक में ऊपर के हिस्से से भयंकर गर्मी थी तो नीचे के भाग में उतनी ही कड़ाके की सर्दी थी। पाँचवी नरक में कहीं पर जोरदार गर्मी थी तो कहीं पर जानलेवा ठण्ढ़ी की लहरें उठ रही थी। छठी और सातवीं नरक में हिम पर्वत से भी ज्यादा ठण्ढ़ी थी। शरीर तो क्या, साँस भी जैसे बरफ हुई जा रही थी! नरक में रहने वाले क्रूर स्वभाव के परमाधमी देव नरक के जीवों को शूली पर चढ़ा रहे थे, तो कुछ जीवों को जीतेजी आग की भट्ठी में झोंक रहे थे। कुछ जीवों को वज्र जैसे तीखे नुकीले काँटों पर कपड़े की गठरी का भाँति पटक रहे थे तो कुछ जीवों को आरी से ऐसे काट रहे थे जैसे कि लकड़ी छील रहे हों। वे परमाधमी कइयों को त्रिशूल से बींध रहे थे तो तलवार से कइयों के टुकड़े-टुकड़े कर रहे थे। कइयों की आँतों को खींचकर बाहर निकाल रहे थे तो कइयों का पेट चीर रहे थे।
नरक के जीवों के हाथ, पैर, सिर वगैरह अवयव बहुत बड़ी कोठी में डालकर पका रहे थे और फिर वे परमाधमी उन्हें खाते थे। कुछ के शरीर के कच्चे ही टुकड़े कर-कर के चबा रहे थे। कुछ जीवों को वे चने कुरमुरे की तरह गरम-गरम रेत में सेक रहे थे। कुछ को वैतरणी नाम की नदी के खौलते हुए गर्म-गर्म पानी के प्रवाह में डुबा रहे थे तो कुछ को जबरदस्ती गर्म-गर्म सीसा पिला रहे थे। कुछ की जीभ को एकदम तीक्ष्ण सुई से बींध रहे थे।
कुछ नरक के जीवों को अग्नि में तपाये हुए खम्भे के साथ जबरदस्ती लिपटा रहे थे तो कुछ को नुकीले काँटों के बिछौने पर मार-मार कर सुला रहे
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