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पत्र ९
६४
देखण दे रे सखी! मुने देखण दे....
चन्द्रप्रभ-मुखचन्द.... सखी, उपशम रसनो कन्द.... सखी,
गत कलिमल दुःखदंद.... सखी! देखण दे.... सुहुम निगोदे न देखियो.... सखी,
बादर अति ही विशेष.... सखी, पुढवी, आउ न लेखियो.... सखी,
तेउ-वाउ लेश.... सखी! देखण दे.... वनस्पति अति घण दिहा.... सखी,
दीठो नहीं देदार.... सखी, बि-ति-चउरिंदिय जललीहा.... सखी,
गत सन्नि पण धार.... सखी! देखण दे.... सुर-तिरि-निरय निवासमां.... सखी,
__ मनुज अनारज साथ.... सखी, अपज्जत्ता प्रतिभासमां.... सखी,
चतुर न चढियो हाथ.... सखी! देखण दे.... इम अनेक थल जाणीए.... सखी,
दर्शन विण जिनदेव.... सखी, आगमथी मत जाणीए.... सखी,
कीजे निर्मल सेव.... सखी! देखण दे.... निर्मल साधु-भक्ति लही... सखी,
योग - अवंचक होय... सखी, क्रिया-अवंचक तिम सही... सखी,
फल - अवंचक जोय... सखी! देखण दे...
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