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पत्र ८ सावधान मनसा करी, धारो जिनपद सेव!
जिनचरणों की सेवा, जागृत मन से करनी होगी। सावधान बनकर करनी होगी। कोई भौतिक सुखों का प्रलोभन जागृत नहीं हो जाना चाहिए। कोई निराशा.... हताशा से.... जिनचरणों की सेवा छूट नहीं जानी चाहिए। उनकी आज्ञाओं का पालन करने की भरसक कोशिश करते रहना चाहिए।
अब, श्री सुपार्श्वनाथ भगवंत को भिन्न-भिन्न नामों से वंदना करेंगे। इन नामों से भगवंत का व्यापक परिचय प्राप्त होता है। १. हे भगवंत, आप शिव हैं, कल्याणकारी हैं, आपको मेरी वंदना! २. हे भगवंत, आप शंकर हैं, शान्तिदाता हैं, आपको मेरी वंदना! ३. हे भगवंत, आप जगदीश्वर हैं, आप को मेरी वंदना! ४. हे भगवंत, आप जिन हैं, आपको मेरी वंदना! ५. हे नाथ, आप भगवान हैं, ऐश्वर्यशाली हैं, आपको मेरी वंदना! ६. हे नाथ, आप अरिहा हैं, पूजनीय हैं, आपको मेरी वंदना! ७. हे नाथ, आप अरुहा हैं, पुनः संसार में लौटने वाले नहीं हो! आपको मेरी
वंदना! ८. हे नाथ, आप तीर्थंकर हैं, धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले हैं! आपको मेरी
वंदना! ९. हे नाथ, आप ज्योतिस्वरूप हैं, तेजोमय हैं, आपको मेरी वंदना! १०. हे नाथ, आप असमान हैं, अनन्य हैं, आपको मेरी वंदना! ११. हे प्रभो, आप अलख हैं, अगोचर हैं, आपको मेरी वंदना! १२. हे प्रभो, आप निरंजन हैं, निर्मल हैं, आपको मेरी वंदना! १३. हे प्रभो, आप सकलजंतुविशराम हैं, यानी सभी जीवों के लिए आश्वासनरूप
हैं, आपको मेरी वंदना! १४. हे प्रभो, आप अभयदान-दाता हैं, आपको मेरी वंदना! १५. हे प्रभो, आप पूरण आतमराम हैं, संपूर्ण आत्मसुख में मग्न हैं, आपको
मेरी वंदना! १६. हे प्रभो, आप वीतराग हैं, आपको मेरी वंदना! १७. हे प्रभो, आप मदरहित हैं, आपको मेरी वंदना! १८. हे प्रभो, आप कल्पनारहित हैं, चिन्ता रहित हैं, आपको मेरी वंदना! १९. हे प्रभो, आप रतिरहित हैं, खुशीरहित हैं, आपको मेरी वंदना!
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