SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २० १६५ सेवक किम अवगणिये हो मल्लि जिन! ए अब शोभा सारी? अवर जेहने आदर अति दिये, तेहने मूल निवारी.... हो मल्लि . १ ज्ञानस्वरूप अनादि तमाएं, लीधुं तमे ताणी, जुओ अज्ञानदशा रीसावी, जातां कोण न आणी.... हो मल्लि . २ निद्रा सुपन जागर उजागरता तुरीय अवस्था आवी निद्रा सुपन दशा रीसाणी, जाणी न नाथ मनावी.... हो मल्लि . ३ समकित साथे सगाई कीधी सपरिवार शुं गाढ़ी, मिथ्या-मति अपराधण जाणी घरथी बाहिर काढी.... हो मल्लि. ४ हास्य अरति शोक दुगंछा भय पामर करसाली, नो-कषाय गज श्रेणि चढतां श्वान तणी गति झाली.... हो मल्लि. ५ राग-द्वेष अविरतिनी परिणति ए चरणमोहना योद्धा, वीतराग परिणति परिणमतां उठी नाठा बोघा..... हो मल्लि . ६ वेदोदय कामा परिणामा काम्य करम सहु त्यागी, __नि:कामी करुणारस सागर, अनंत चतुष्क पद पागी.... हो मल्लि. ७ दान-विघन वारी सहु जनने, अभय दानपद दाता, लाभ-विघन जगविघन निवारक, परम लाभ रस माता....हो मल्लि. ८ वीर्य-विघन पंडित वीयें हणी पूरव पदवी योगी, भोगोपभोग दोय विघन निवारी पूरण भोग सुभोगी.... हो मल्लि. ९ ए अढार दूषण वर्जित तनु मुनिजन वृन्दे गाया, अविरति-रूपक दोष-निरुपण, निर्दूषण, मन भाया.... हो मल्लि. १० इणविध परखी मन-विशरामी जिनवर गुण जे गावे, दीनबंधुनी म्हेरनजरथी आनन्दघन-पद पावे.... हो मल्लि . ११ हे मल्लिनाथ जिनेन्द्र! आपके जो सेवक पहले आपकी शोभारूप थे, उन पुराने सेवकों का अब क्यों अपमान [अवगणिये] कर निकाल दिये? इससे क्या आपकी शोभा बढ़ी है? दूसरे देव [अवर] जिनको बहुत आदर देते हैं, अपने पास रखते हैं, उनको सर्वथा [मूल] निकाल दिये! प्रेम-कटाक्ष की यह भाषा है! 'मल्लिनाथ' में से 'मल्ल' शब्द लेकर 'आप For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy