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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १ ३ तू मत मान लेना कि तू हमेशा मन्दिर में जाता है, इसलिए परमात्मा की दुनिया से तू परिचित है! मन्दिर तो परमात्मसृष्टि में प्रवेश करने का द्वार है मात्र ! ज्यादातर लोग द्वार से ही वापस लौट आते हैं! जैसे बंबई में लोग 'गेट वे ऑफ इन्डिया' देख कर ही लौट जाते हैं! द्वार मात्र देखने के लिए नहीं होता है... प्रवेश के लिए होता है। मंदिर द्वार है... परमात्मसृष्टि में प्रवेश करने के लिए। परमात्मा का नाम, परमात्मा की मूर्ति, परमात्मा के मन्दिर... ये सब माध्यम हैं, परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के । आन्तर प्रीति का सम्बन्ध ! आन्तर भक्ति का सम्बन्ध ! यह सम्बन्ध हो जाने पर ... दुनिया के सारे स्वार्थ भरे सम्बन्ध नीरस बन जायेंगे... और समग्र जीवसृष्टि के साथ मैत्री का पवित्र सम्बन्ध स्थापित हो जायेगा। सारे भय मिट जायेंगे। सारी चिन्तायें नष्ट हो जायेंगी। मन प्रफुल्लित हो जायेगा । प्रसन्नता कभी जायेगी नहीं । बाह्य परिस्थितियों की प्रतिकूलता होने पर भी तू अस्वस्थ नहीं बनेगा। हर परिस्थिति में तू स्वस्थ, प्रसन्न और संयत बना रहेगा । प्रिय चेतन, यह पत्र मैं तुझे दक्षिण के एक भव्य एवं रमणीय तीर्थ में बैठकर लिख रहा हूँ। इस कुल्पाक तीर्थ का प्राचीन इतिहास है...। कितनी नयन-मनोहर प्रतिमायें हैं इस तीर्थधाम में ! भगवान आदिनाथ, भगवान महावीर स्वामी और भगवान नेमनाथ, तीन गर्भद्वारों में बिराजमान हैं। सभी श्याम प्रतिमायें हैं, और सभी अर्ध पद्मासनस्थ हैं। सुविशाल रंगमंडप है और उत्तुंग शिखर है। यहाँ शान्ति है... स्वच्छता है और पवित्र वातावरण है। परमात्मसृष्टि में स्वच्छन्द विचरण करने के लिए ऐसे तीर्थ कितने उपयुक्त होते हैं ! मंदिर के इर्द-गिर्द विशाल पुष्प वाटिका है...! धर्मशाला है और भोजनशाला भी है। गाँव से कुछ दूरी पर यह तीर्थ आया हुआ है... इसलिए वातावरण शान्त है। ऐसा वातावरण आध्यात्मिक साधना में खूब सहायक बनता है । मैंने तुझे जो परमात्म-सृष्टि में प्रवेश करने की बात लिखी है, वो भी एक प्रकार की आध्यात्मिक साधना ही है । यहाँ तू चाहे तो परमात्मा की प्रतिमा के सामने दोचार घंटा ध्यान कर सकता है। चूँकि रविवार के अलावा यात्रिकों की भीड़ नहीं होती है। कोलाहल नहीं होता है । तात्पर्य यह है कि ऐसे तीर्थधाम, परमात्मतत्त्व से आंतर-सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बहुत ही उपयुक्त होते हैं । 'मुझे परमात्मा से आन्तर प्रीति - सम्बन्ध बाँधना है', इस निर्धार के साथ तू कभी इस तीर्थ में आना ! तीन दिन For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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