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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १ तू शायद यह बात पढ़कर सोचेगा कि परमात्मा अदृश्य हैं, अश्राव्य हैं, अस्पर्श्य हैं... अपने लिए... तो उनके साथ आंतर प्रीति कैसे हो सकती है? न हम अपनी आँखों से उनको देख सकते हैं, न उनको सुन सकते हैं... न उनको स्पर्श कर सकते हैं! हमारी सभी इन्द्रियाँ उनका संपर्क स्थापित करने में असमर्थ हैं... तो फिर उनसे आंतर सम्बन्ध कैसे स्थापित किया जाय? चेतन, परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करना होगा, मन से । मन भी तो एक इन्द्रिय ही है न? ज्ञानयुक्त पवित्र मन से सम्बन्ध स्थापित हो सकता है। जिन महर्षिओं ने, जिन महात्माओं ने परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित किया था... और उन्होंने अपने दिव्य आन्तर अनुभवों को लिखे थे... ऐसे अनेक छोटे-बड़े ग्रन्थ आज भी हमें मिलते हैं। उन ग्रन्थों का ज्ञान होना चाहिए | ग्रन्थों का गहराई में जाकर अध्ययन करना चाहिए। मात्र एक-दो बार ग्रन्थ पढ़ लेने से काम नहीं चलेगा। ऐसा ज्ञान तभी प्राप्त हो सकेगा, जब मनुष्य स्वस्थ, शान्त, निराकुल और अव्यथित होगा। अध्ययन करते समय मन में अस्वस्थता, अशान्ति, आकुलता और व्यथा नहीं होनी चाहिए | चूँकि ज्ञान पाने का माध्यम मन ही है! यदि किसी की आँखें नहीं है, फिर भी वो अध्ययन कर सकता है, यदि उसका मन स्वस्थ है, नीरोगी है तो । परन्तु आँखें होते हुए भी मन स्वस्थ नहीं है, रोगी है तो वह अध्ययन नहीं कर सकेगा। __ शास्त्रज्ञान के माध्यम से परमात्मतत्त्व के अस्तित्व के विषय में तू निःशंक बनेगा | परमात्मतत्त्व के स्वरूप-निर्णय में तू स्पष्ट बोध पा सकेगा। तेरी बुद्धि जितनी गहराई में जायेगी... उतनी तेरी श्रद्धा पुष्ट होती जायेगी। यदि तू स्वयं ऐसे ग्रन्थों का अध्ययन नहीं कर सकता है... तो एक-दो महीने का समय लेकर मेरे पास आ जाना! मैं तुझे अध्ययन करवाऊँगा। परन्तु जब आये तब तेरा मन स्वस्थ, शान्त और निराकुल होना चाहिए | हालाँकि इस पत्रमाला के माध्यम से मैं तुझे एक ग्रन्थ के विषय में ही लिखना चाहता हूँ - कि जो ग्रन्थ परमात्मा के विषय में ही है। परमात्मप्रीति और परमात्मभक्ति के विषय में बहुत ही रोचक बातें लिखी गई हैं | उस ग्रन्थ के विषय में लिखने से पूर्व मैं तुझे आज यह पूछना चाहता हूँ कि तू अगमअगोचर ऐसे परमात्मा की दुनिया में... मन के पंखों से उड़ कर जाना चाहता है क्या? नयी दुनिया में प्रवेश करने का साहस तू कर सकेगा क्या? हाँ, तेरे लिए यह नयी दुनिया है! For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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