________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मारग साचा कौन बतावे? ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ० यदि मनुष्य परमात्मा को सर्वज्ञ-सर्वदर्शी एवं अनन्त करुणा के सागर
के रूप में माने-समझे और प्रेम करे तो मोह-माया-ममता-संकीर्णता एवं
दुश्चितन से मुक्त हो सकता है। ० परमात्मा का मन्दिर तो परमात्म-सृष्टि में प्रवेश करने का द्वार है। ० परमात्मा के साथ आन्तर प्रीति का सम्बन्ध स्थापित होने पर दुनिया के
सारे स्वार्थभरे सम्बन्ध नीरस बन जायेंगे और समग्र जीवसृष्टि के साथ __ मैत्री का पवित्र सम्बन्ध स्थापित हो जायेगा। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । पत्र : १
प्रारंभिक
प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला।
"मृत्यु' विषयक पत्रों से तुझे खूब संतुष्टि मिली-जानकर आनन्द हुआ। 'मृत्यु' से तू निर्भय बना निराकुल बना-जानकर विशेष प्रसन्नता हुई। अब तू स्वस्थ मन से परमात्मा से आन्तर सम्बन्ध बाँध सकेगा।
आज, जब मनुष्य अनन्त तृष्णाओं के भीषण प्रवाह में बह रहा है, विश्वसमाज सर्वनाशी विभीषिकाओं के मुँह में फँसा जा रहा है....मनुष्य की भावुकता का शोषण हो रहा है....तब मनुष्य को किसके सहारे जीवन जीना? विकट प्रश्न है। सार्वत्रिक दृष्टि से समाधान नहीं मिलता है, व्यक्तिगत दृष्टि से समाधान मिलता है। वो समाधान है, परमात्मा की शरणागति। __ चेतन, भारतीय संस्कृति का मूल है, परमात्म-श्रद्धा | भारतीय जीवन के रग-रग में परमात्मा की सत्ता घुली हुई है। यदि मनुष्य परमात्मा को सर्वज्ञसर्वदर्शी एवं अनन्त करुणा के सागर के रूप में माने-समझे और प्रेम करे तो मोह-माया-ममता-संकीर्णता एवं दुश्चितन से मुक्त हो सकता है। उसका अन्तःकरण मलीनता से मुक्त, कषाय-कल्मषों के आवरण से रहित हो सकता है। यदि मनुष्य परमात्मा को महागोप, महानिर्यामक और महान् सार्थवाह के रूप में माने-समझे और प्रेम करे तो भय, चिन्ता, व्याकुलता एवं असहायता के दुर्भावों से मुक्त हो सकता है।
For Private And Personal Use Only