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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ पत्र १४ गये!' आनन्दघनजी को क्या इच्छित था? वे क्या चाहते थे? भगवंत के नयन देखकर उनकी वह चाहना पूर्ण हो गई थी। उनके मन में कोई दुःख नहीं रहा, उनके पास दुर्भाग्य नहीं रहा! उनके मन में सुख का सागर उछलने लगा और उनके चरणों में संपत्ति का ढेर आकर पड़ा.... ऐसा अनुभव उन्होंने किया था। 'दुख-दोहग दूरे टल्यां रे, सुख-संपद शुं भेट....' चेतन, इस पंक्ति के बाद जो दूसरी पंक्ति उन्होंने लिखी है, बड़ी मार्मिक है! और मैं यह समझता हूँ कि आनन्दघनजी वही तत्त्व चाहते होंगे! वह तत्त्व है, निर्भयता! निराकुलता! धींग धणी माथे कियो रे, कुण गंजे नर-खेट.... गुजराती भाषा में 'धींग' कहते हैं, शूरवीर को, बहादुर को। कवि कहते हैं'हे भगवंत, आप जैसे महान परम पुरुष मेरे सर पर मालिक हैं, अब मैं पामर मनुष्यों की क्यों परवाह करूँ? [नरखेट' का अर्थ है : पामर मनुष्य] मैं क्यों समाज के पामर मनुष्यों से दबूं? आनन्दघनजी का जो समय था, उस समय में शिथिलाचारी यतियों का जैन समाज पर भारी प्रभाव था। सच्चे.... संयमी और शास्त्रज्ञ ऐसे साधुओं को भी व्यवहार दृष्टि से दबना पड़ता था। समाज का बहुमत उन शिथिलाचारी यतियों के पक्ष में था। आनन्दघनजी ऐसे लोगों को ‘पामर मनुष्य' [नरखेट] कहते हैं। वे जीवन में कभी भी पामर जीवों से दबे नहीं। उन्होंने परमात्मा के लोचनों में से हिम्मत का, सत्त्व का तत्त्व पाया था। वही उनका इच्छित था, वांछित था। दृष्टि की दिव्यता पाने के बाद वे विमलनाथ के चरणों पर दृष्टि स्थिर करते हैं। उन्होंने वहाँ 'कमला' को देखी! लक्ष्मी को देखी। वे आश्चर्य पाते हैं! 'कमला तो पंकज [कमल] में रहती है, वह यहाँ विमलनाथ के चरणों में कैसे आ गयी?' कुछ सोचा और कारण मिल गया! चरण-कमल कमला वसे रे, निर्मल थिर-पद देख.... __ हे विमलप्रभो, कमला [लक्ष्मी] ने आपके चरणों में निर्मलता देखी, स्थिरता देखी, इसलिए वह आपके चरण-कमल में आकर बस गई! उसने उस पंकज का त्याग कर दिया.... चूँकि वह पैदा होता है पंक में! इसलिए वह निर्मल नहीं है और शाम को मुरझा जाता है, इसलिए वह स्थिर नहीं है। मलीन और अस्थिर पंकज का इसलिए त्याग किया कमला ने! For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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