________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पत्र १२
९३
स्थापना- अध्यात्म
भाव-अध्यात्म की प्राप्ति में जहाँ-जहाँ नाम-अध्यात्म, और द्रव्य-अध्यात्म उपयोगी बनता हो, उसका उपयोग करना चाहिए। साधन के रूप में उपयोग करना चाहिए । भाव -अध्यात्म की प्राप्ति भ्रमणारूप नहीं बन जानी चाहिए। आत्मगुण-क्षमा, नम्रता, सरलता, समता वगैरह प्रगट होते जाते हों, तो समझना कि भाव -अध्यात्म प्राप्त होता जा रहा है।
दुनिया में अध्यात्म के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करनेवाले अनेक ग्रन्थ मिलते हैं। अध्यात्म की बातें करनेवाले भी अनेक लोग होते हैं। चेतन, तू सुनना वे बातें। तू पढ़ना वे अध्यात्म की किताबें । ध्यान से पढ़ना । ध्यान से सुनना। परन्तु उन बातों में उलझना नहीं । वे बातें सुनकर विकल्पों की जाल में फँसना नहीं। विकल्परहित रहना ।
शब्द-अध्यातम अर्थ सुणीने निर्विकल्प आदरजो रे...
शब्द-अध्यात्म का अर्थ है, अध्यात्म के शास्त्र । जो भी अध्यात्म का शास्त्र मिले, उसका अर्थ सुनना । उस शास्त्र के विद्वान् से सुनना । खंडन-मंडन में उलझना नहीं।
शब्द - अध्यातम भजना जाणी, हान-ग्रहण मति धरजो रे...
कहे जाने वाले सभी अध्यात्म के शास्त्रों में अध्यात्म होता ही है, ऐसा मानना नहीं। कुछ शास्त्रों में अध्यात्म होता है, कुछ शास्त्रों में अध्यात्म नहीं होता है। इसको 'भजना' कहते हैं।
चेतन, यह निर्णय तुझे स्वयं तेरी बुद्धि से करना होगा। 'यह शास्त्र अध्यात्म का है या नहीं'- इस बात का निर्णय तुझे करना होगा। किस ग्रन्थ में से कौनसी बात ग्रहण करनी चाहिए और कौनसी बात छोड़ देनी चाहिएयह भी तेरी बुद्धि पर निर्भर रहेगा ।
‘हान-ग्रहण' का अर्थ छोड़ना और ग्रहण करना । छोड़ने में और ग्रहण करने में मनुष्य की विवेकबुद्धि निर्णायक बननी चाहिए। शास्त्रज्ञान से परिक्रमित सूक्ष्म (Sharp) बुद्धि होनी चाहिए ।
आज विश्व में, पूर्व-पश्चिम के देशों में योग और अध्यात्म के नाम पर हजारों पुस्तकें छपती हैं। एक व्यवस्थित व्यवसाय ही चल रहा है । अध्यात्ममार्ग में व्यवसाय को कोई स्थान नहीं होना चाहिए । इसलिए 'अध्यात्मशास्त्र' की परीक्षा करनी ही चाहिए ।
For Private And Personal Use Only