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देवबोधि की पराजय
७३
देवों का कथन पूरा हुआ। तत्पश्चात् मूलराज वगैरह पूर्वज बोले : ‘वत्स, कुमारपाल! हम सातों तेरे पूर्वज हैं । तू हमें शायद नहीं पहचानता होगा। हम तुझे यह कहने के लिए आये हैं, कि तू हमारे गृहीत और आचरित धर्म का त्याग मत करना । हम इन्हीं ब्रह्मा-विष्णु और महेश देवों को मानते हैं । उन्ही का बताया हुआ धर्म मानते थे । इसलिए आज हम स्वर्ग के सुखों का अनुभव कर रहे हैं। हमने हमारे पूर्वजों का धर्म कभी बदला नहीं था । अतः तुझे भी अपने पूर्वजों का धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। तुझसे ज्यादा क्या कहना ? तेरा भला हो !'
देव अदृश्य हो गये ।
पूर्वज भी अदृश्य हो गये ।
राजा कुमारपाल आश्चर्य में डूब गये । उनकी बुद्धि कुण्ठित हो गई। एक ओर देवपत्तन के सोमनाथ के वचन और दूसरी ओर देवबोधि के बताये हुए देवों के वचन !! कौन सही... कौन गलत ? कौन सच्चा ... कौन मायावी ?' कुमारपाल का सिर चकराने लगा। उन्होंने देवबोधि से कहा :
'ठीक है... आप जाइये... मैं आपके कहे अनुसार ही करूँगा ! '
इस सारी घटना में महामंत्री उदयन के पुत्र वाग्भट मंत्री, राजा कुमारपाल के साथ थे। देवबोधि के चमत्कार उन्होंने भी प्रत्यक्ष देखे थे।
वे राजमहल से सीधे ही आचार्यदेव के पास गये। आचार्यदेव को वंदना करके उन्होंने कहा :
'गुरुदेव, पाटन में आये हुए देवबोधि नाम के संन्यासी के चमत्कारों की बातें आपके कानों तक पहुँची होगी । '
आज राजसभा में उस ने कई तरह के चमत्कार बताये! गुरुदेव, यह योगी कोई साधारण या मामूली नहीं है... उसने योगबल से ब्रह्मा-विष्णु-महेश को बुलाया...अरे...मूलराज ... भीमदेव वगैरह पूर्वजों को प्रत्यक्ष उपस्थित कर दिखाया !
अपने महाराजा भी उसके ऐसे चमत्कार देखकर उसकी ओर खिंच जाएँ... यह बहुत संभव है ! गुरुदेव, मुझे चिंता एक ही बात की सता रही है कि कहीं महाराजा उस योगी के प्रभाव में अभिभूत होकर जैन धर्म का त्याग न कर दे?'
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