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कुमारपाल का जन्म
युवक कुमारपाल भी दो-चार बार पाटन जा आया था। एकबार कुमारपाल पाटन में था तब उसने आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी की काफी प्रशंसा सुनी थी।
'महाराजा सिद्धराज भी हेमचन्द्रसूरिजी के अनन्य भक्त हैं। सिद्धराज की विनति से हेमचन्द्रसूरिजी ने संस्कृत भाषा का बड़ा व्याकरण रचा है। राजा ने गुरुदेव के साथ तीर्थयात्राएँ भी की है।'
यह सब सुनकर कुमारपाल के मन में भी गुरुदेव के दर्शन करने की इच्छा जन्मी। __कुमारपाल गुरुदेव के उपाश्रय में पहुँचा। दोनों हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर उसने गुरुदेव को वंदना की। अपना संक्षिप्त परिचय दिया और विनयपूर्वक उनके चरणों में बैठ गया ।
गुरुदेव ने युवक को 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया। कुमार ने कहा : 'गुरुदेव, आप इजाजत दें तो एक सवाल पूछू?' 'गुरुदेव ने कहा : 'बड़ी खुशी से जो भी पूछना हो... तू पूछ सकता है।'
'गुरुदेव, इस सृष्टि में विविध स्वभाववाले आदमी रहते हैं। उनमें अलगअलग तरह के अनेक गुण दिखायी देते हैं! मैं यह जानना चाहता हूँ कि सभी गुणों में श्रेष्ठ गुण कौन सा है?'
गुरुदेव के चेहरे पर स्मित उभर आया। उन्हें प्रश्न अच्छा लगा। उन्होंने कहा : 'कुमार, सभी गुणों में श्रेष्ठ गुण है 'सत्त्व!' सब कुछ इस सत्त्व में निहित है : 'सर्वं सत्त्वे प्रतिष्ठितम्'। जिस आदमी में सत्त्व है... उसमें अन्य सभी गुण अपने आप आ जाते हैं।'
'गुरुदेव, यह सत्त्वगुण की बात मुझे विस्तार से समझाने की कृपा कीजिए ना!
गुरुदेव ने कहा : 'वत्स, मैं तुझे विस्तार से समझाता हूँ।' - सत्त्वशील आदमी दुःख में धर्म का त्याग नहीं करता है। - सत्त्वशील व्यक्ति ग्रहण की हुई प्रतिज्ञा का दृढ़ता से पालन करता है।
- सत्त्वशील पुरुष दुःखों से घिर जाने पर भी नाहिम्मत नहीं होता है और न ही निराश होता है!
- सत्त्वशील आदमी के लिए कोई भी कार्य अशक्य नहीं है। - सत्त्वशील मनुष्य पर उपकार करने के लिए समुद्र में कूदने से डरता
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