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कुमारपाल का जन्म
४७ - मैं समग्र पृथ्वी का रक्षण करूँ! - मैं दुनिया के तमाम प्राणियों को अभयदान हूँ! - मैं सभी मनुष्यों को व्यसनों के चंगुल से मुक्त करूँ! - साधु पुरुषों को भावपूर्वक दान दूँ! - मैं सब गरीबों की गरीबी दूर कर दूँ! - मैं परमात्मा के नये मंदिरों का निर्माण करूँ!
नौ महीने पूरे हुए। काश्मीरा देवी ने एक सुन्दर-तन्दुरूस्त पुत्र को जन्म दिया। उसी समय आकाश में देववाणी हुई।
'यह बालक विशाल राज्य प्राप्त करेगा और उस राज्य में धर्म का साम्राज्य स्थापित करेगा।'
नवजात शिशु सौम्य था। सुन्दर था। सब को प्रिय लगे वैसा मोहक था। उसका नाम 'कुमारपाल' रखा गया।
त्रिभुवनपाल ने सोचा कि 'पुत्र यदि अविनीत हो तो आग की भाँति कुल को जला डालता है। परन्तु यदि विनीत और कलायुक्त है तो शंकर की जटा में रहे हुए चन्द्र की भाँति वह कुलदीपक होता है। इसलिए मुझे कुमारपाल को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। - कुमारपाल को व्यावहारिक शिक्षा दी गई। -- साथ ही साथ युद्ध-कला सिखाई गई। - माता ने पुत्र को गुणवान बनाने के लिए पूरी सजगता रखी।
उस पुत्र में मेरु पर्वत का स्थैर्य गुण आया । बृहस्पति का बुद्धि गुण आया। महासागर का गांभीर्य गुण आया। चन्द्र का सौम्यता गुण उतरा। सूर्य का प्रताप उसके व्यक्तित्व में झलकने लगा। कामदेव का सौभाग्य और विष्णु का प्रभाव कुमारपाल में उभरने लगा।
जब कुमारपाल युवावस्था में आया तब माता-पिता ने पुत्र के लिये सुयोग्य कन्या पसंद की। उसका नाम था भोपलदेवी। भोपलदेवी के साथ कुमार की शादी हुई। भोपलदेवी ने अपने रूप और गुणों से कुमार का दिल जीत लिया।
त्रिभुवनपाल के संबंध, राजा सिद्धराज के साथ अच्छे थे। अक्सर किसी न किसी प्रसंग पर त्रिभुवनपाल पाटन आते-जाते रहते थे। वैसे सिद्धराज भी सौराष्ट्र में आता तब दधिस्थली में त्रिभुवनपाल की मेहमाननवाजी के लिए चला आता ।
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