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कुमारपाल का जन्म नहीं कि आकाश में छलांग लगाने से हिचकता नहीं है! आवश्यकता होने पर धधकती आग में भी कूद जाए! और जहर का प्याला भी पी जाए! ___ - सत्त्वशील मनुष्य जरुरत पड़ने पर अपना सर्वस्व होड़ में रखने से झिझकता नहीं है! ___ - सत्त्वशील आदमी कभी भी 'अरर'... 'हाय.. हाय...' ऐसे डरपोक शब्दों का सहारा नहीं लेता है! __- सत्त्वशील मनुष्य राजा-प्रजा की रक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है, समय आने पर अपने आपका बलिदान भी दे देता है! __ जैसे कि कुमारपाल को उसके भावी जीवन की कठिनाइयों के लिए आचार्यदेव प्रतीकात्मक रूप से निर्देश दे रहे थे! __'देखना, कुमार, तेरे सिर पर संकटों के बादल मँडराने वाले हैं, आफतों की आँधी से तुझे गुजरना है... उस वक्त तू अपने अपूर्व सत्त्व का परिचय देना। हिम्मत मत हारना! हौसला गँवाना मत!
आचार्यदेव से कुमारपाल को समाधान प्राप्त हुआ। उसे आचार्यदेव अच्छे लगने लगे।
वह वहाँ से खड़े होकर गुरुदेव को प्रणाम करके उपाश्रय के बाहर निकला और अपने गंतव्य की ओर लौट गया।
हेमचन्द्रसूरिजी के साथ कुमारपाल की पहली मुलाकात से कुमारपाल के दिल में खुशी की महक छाने लगी थी।
हेमचन्द्रसूरिजी को खयाल आ ही गया था कि कुमारपाल, सिद्धराज की मृत्यु के पश्चात् गुजरात का राजा बने इस बात से सिद्धराज सख्त नाराज है! और वह कुमारपाल को मारने के लिए हर संभव कोशिश करेगा। __कुमारपाल के जाने के पश्चात् आचार्यदेव गहरे विचार में डूब गये! 'देवी अम्बिका द्वारा किया हुआ भविष्य कथन मिथ्या होगा नहीं!' यह बात आचार्यदेव स्पष्ट तौर पर मानते थे। इसलिए 'सिद्धराज लाख उपाय करे... हर एक कोशिश करे...फिर भी कुमारपाल के प्राणों को वह हानि नहीं पहुंचा सकता' इस बात को लेकर वे एकदम निश्चिंत थे।
बुढ़ापे में भी सिद्धराज को जरा भी शांति नहीं थी। सुकुन नहीं था। गुजरात के राजसिंहासन पर कुमारपाल किसी भी हालत में नहीं आना
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